अनुत्तर निर्जरार्थी आचार्य महाश्रमण

अनुत्तर निर्जरार्थी आचार्य महाश्रमण

आगम साहित्य में मुनि के लिए एक विशेषण का प्रयोग मिलता है- निज्जरट्ठिए। मुनि का खाना, पीना, सोना बोलना, चलना, पढ़ना, उपदेश देना आदि सब क्रियाएं निर्जरा के साथ जुड़ी हुई हैं। आचार्य महाश्रमणजी की जीवन-चर्या निर्जरा की परिक्रमा करती रहती है, फिर वह लोगों को सैकड़ों बार मंगलपाठ सुनाना हो या किसी शोक संतप्त परिवार को प्रतिबोध देना हो, चाहे रुग्ण साधु-साध्वियों की तत्काल सेवा की व्यवस्था करना हो या उग्र विहार करना हो। आचार्यश्री की श्रमनिष्ठा और निर्जरा की भावना देखकर आचार्य महाप्रज्ञजी अनेक बार फरमाते थे- ‘महाश्रमण तपस्वी है, परिश्रमी है, अतः बहुत निर्जरा कर रहा है।’
भगवान महावीर ने निर्जरा के बारह भेदों का उल्लेख किया है, उनमें छह बाहî तथा छह आंतरिक हैैं। खाद्य-संयम, ऊणोदरी तप, चीनी मात्र का परित्याग और प्रतिदिन आसन-प्राणायाम- ये सारे उपक्रम बाह्य तप को लेकर करने वाले हैं। बाहî तप में आचार्य महाश्रमणजी की प्रतिसंलीनता और त्रिगुप्ति की साधना उकृष्ट है। मन से असत् के चिंतन का निषेध, उत्कृष्ट वाक् संयम तथा घंटों तक एक आसन में स्थिर मुद्रा में बैठना- सबके मन को आकृष्ट करने एवं श्रद्ध्रा उत्पन्न करने वाले हैं। मरण विभक्ति प्रकीर्णक में उल्लेख है कि त्रिगुप्त मुनि के विपुल निर्जरा होती है। यह बात आचार्य महाश्रमणजी के जीवन में पूर्णतया चरितार्थ होती है।
छहांे आभ्यंतर तप की साधना आचार्य महाश्रमणजी के जीवन में देखी जा सकती है। इनमें भी विनय और वैयावृत्त्य की अप्रतिमसाधना धर्मसंघ के प्रत्येक सदस्य को अभिनव प्रेरणा देने वाली है। आचार्य महाप्रज्ञजी अनेक बार साधु-साध्वियों के समक्ष युवाचार्यश्री के विनय और गुरु के प्रति सहज समर्पण को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते थे। सैकड़ों ऐसे प्रसंग हैं, जब कष्ट झेलकर भी उन्होंने गुरू के वचनों को साकार किया।
आचार्य महाश्रमणजी का साधु-साध्वियों एवं समणियों के प्रति जो करुणा का भाव है, वह स्तुत्य है। विशाल धर्मसंघ में किसी भी सदस्य को जब भी शारीरिक सेवा की आवश्यकता हुई, आचार्यश्री अपने आहार और विश्राम को गौण करके भी तत्काल उनकी समुचित व्यवस्था कर देते हैं। सर्दी गर्मी सहन करना, लोगों की भावना को साकार करना, हर समय जनता के लिए उपलब्ध रहना, धैर्य से सबकी बात सुनना, उग्र विहार करना आदि ऐसे उपक्रम हैं, जिनसे आचार्यश्री प्रतिक्षण अप्रतिम निर्जरा कर रहे हैं। आचार्यश्री महाश्रमणजी के दीक्षा के पचासवें वर्ष पर मेरी हार्दिक प्रणतियां।