अर्हम

अर्हम

संयममय जीवन हो।
यात्रा मंगलमय हो।।
धन्य-धन्य है आत्मा थारी, महके सौरभ विस्मय हो।।
यात्रा मंगलमय हो।।
कांकरिया कुल उजियारो, माँ सज्जन लाल दुलारो।
पिता माणकचंद सौभागी, पुत्र मिल्यों मनहारो।
आठों भाई-बहनों में ओ, तीजों अजु अजय हो।।
दादी रूपाबाई तेरापंथ की, गहरी नीवें लगाई।
संस्कारों का पोषण देकर, दी मंजिल को ऊँचाई।
स्वर्ग लोक से तुम्हें निहारें, इसमें क्यों समय हो।।
सपरिवार इतिहास रच्योे, लो हो महाप्रज्ञ बरतारों।
चढ़ती जवानी संयम धार्यो, ढलती जवानी संथारों।
तप-जप करता शौर्य बढ़ायो, हर पल चेतन लय हो।।
नीति ‘तन्मय’ संग दीक्षा ली, फिर एकत बढ़ें चरण।
उद्घाटित कर दे रहस्य तो, ज्योति से ज्योति मिल्यो क्यों।
चढ़ती श्रेणी साथ निभाया, अब सहसा क्यों द्वय हो।।
किड़नी की सुनी वेदना कइयों का दिल घबराया।
घोर वेदना देख उदर की, हम सबका चित्त चकराया।
उत्सुक हो परमानंद पाने, दृढ़ता समता को प्रणय हो।।
तारण-तरण तीर्थपति, गुरु महाश्रमण उपकारी।
अंगुली पकड़ राह दिखावे, दृष्टि दे सुखकारी।
मुनि धर्मेश धीरज योग शुभंकर गण सेवा बनी अक्षय हो।।
करां आपसे खमतखामणा, जो राग-द्वेष मन आयो।
प्रत्यक्ष परोक्ष में कोई, अशुभ भाव बरतायो।
लक्षित अब सोपान चढ़ो तुम, शुभ भावों की जय हो।।

लय: संयममय जीवन हो