योग चेतना के विकास के लिए भोग चेतना को कम करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

योग चेतना के विकास के लिए भोग चेतना को कम करें: आचार्यश्री महाश्रमण

भायंदर eqacbZ 26 जून 2023
महान अध्यात्म योगी आचार्यश्री महाश्रमणजी कs भायंदर प्रवास का दूसरा दिन। मंगल पावन पाथेय प्रदान कराते हुए महामनीषी ने फरमाया कि आत्म्ाा संसारी अवस्था में संसार में परिभ्रमण करती है। आगे से आगे जन्म होता रहता है। जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी रहती है। एक समय बाद आदमी अवसान को प्राप्त हो जाता है। संसार में जन्म-मरण के परिभ्रमण का कारण कषाय है। राग-द्वेष, आसक्ति तीव्र होते हैं, तो आत्मा को बार-बार जन्म-मरण की घट्टी में fपसना पड़ता है।
आदमी में पदार्थों का भोग करने की भी इच्छा हो जाती है। जीभ के स्वाद के लिए आदमी कभी स्वास्थ्य के लिए अहितकर चीज भी खा लेता है। भोग चेतना आत्मा का नुकसान करने वाली है, फिर भी आदमी उसका भोग कर लेता है। भोग के साथ मनुष्यों में योग चेतना भी देखने को मिलती है। कितने मनुष्य साधुत्व को स्वीकार कर साधना में संलग्न हो जाते हैं। गृहस्थावस्था मे भी cgqr लोग अपने हिसाब से साधना करते हैं। कई बारह व्रती बन जाते हैं या सुमंगल साधना में लग जाते हैं। कोई प्रतिमा की साधना करते हैं rks उनकी योग चेतना जागृत हो जाती है।
दो मार्ग है- भोग चेतना का मार्ग और योग चेतना का मार्ग। योग साधना के अलग-अलग स्तर हैं। यम नियम, अणुव्रत महाव्रत यह भी योग साधना है। प्रतिहार्य, प्रतिसंलीनता और ध्यान भी योग साधना है। योग साधना का परम उदाहरण चौदहवां गुणस्थान है, जहां अयोग अवस्था आ जाती है। संयोगी केवली की साधना भी बहुत बड़ी है। चौदह गुणस्थान योग साधना के चौदह स्तर हैa। श्रावक भी योग साधक है।
वर्तमान में भरत क्षेत्र में तो आठवें गुणस्थान की साधना भी नहीं है। एक से सात गुणस्थान की साधना यहां हो सकती है। वर्तमान समय में सप्तम गुणस्थान से आगे की योग साधना नहीं हो सकती। इसलिए आदमी सातवें गुणस्थान की योग साधना तक पहुंच जाए तो बड़ी बात हो सकती है। आदमी को इसके लिए पुरुषार्थ करते रहना चाहिये। साध्kqसाध्वियों को भी सातवें गुणस्थान को प्राप्त करने के लिये साधना और पुरुषार्थ करना चाहिये। गृहस्थ भी योग साधना में आगे बढ़ें। भरत चक्रवर्ती की तरह अनासक्त भावना में रहें। योग चेतना के विकास के लिए भोग चेतना को कम करना होगा। जीवन में अणुव्रत के नियमों का पालन करें। जीवन व्यवहार अच्छा रहे।
तुम मत करो पुण्य का काम, पर पाप मत करो, पुण्य का फल पा लोगे।
मत रटो राम का नाम भले ही, किन्तु करो शुभ काम, राम के बल को पा लोगे।
साध्वीवर्याजी ने फरमाया कि जब हमारे कषाय तीव्रप्रबल हो जाते हैं, तब व्यक्ति का दिमाग गर्म हो जाता है। मन अशान्त-बैचैन हो जाता है। आत्म प्रशंसा-चाहने वाला, अपने से बड़ों का दोष्ा देखने वाला व वैर को चिरकाल तक धारण करने वाला व्यक्ति तीव्र कषायी होता है। पूज्यवर के स्वागत अभिनंदन में भायंदर से संबद्ध मुनि सिद्धकुमारजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। गुरु चरणों में पहुंचने वाली साध्वी चन्दनबालाजी ने अपने भावों के साथ एवं सहवर्ती साध्वियों ने गीत का संगान कर पूज्यवर की अभिवन्दना की। स्थानीय भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ. रवि व्यास, नगर सेवक सुरेश खंडेलवाल, नगर सेवक ध्रुवकिशोर पाटिल, तपागच्छ संप्रदाय से मुनि वज्र तिलकजी, तेरापंथ महिला मंडल संयोजिका ममता डांगी, दिव्या फूलफगर आदि ने अपनी भावना व्यक्त की। तेयुप, तेरापंथ कन्या मंडल, किशोर मंडल की प्रस्तुतियां हुई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।