देव, गुरु और धर्म के प्रति समर्पण और भक्ति के भाव होने चाहिए - आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

देव, गुरु और धर्म के प्रति समर्पण और भक्ति के भाव होने चाहिए - आचार्यश्री महाश्रमण

बोरीवली eqacbZ 22 जून 2023
नैसर्गिक महानता के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी आज प्रातः अणुव्रत यात्रा के साथ बोरीवली पधारे। मंगल देशना प्रदान कराते हुए महासाधक ने फरमाया कि भक्ति, समर्पण में शक्ति होती है, ऐसा प्रतीत हो रहा है। अपने आराध्य के प्रति भक्ति का भाव हो, समर्पण का भाव हो। अपने एक मात्र स्वीकृत गुरु के प्रति समर्पण का भाव हो, गुरु के इंगित के प्रति समर्पण का भाव हो और जिस धर्म परंपरा में साधना कर रहे हैं, उसके प्रति समर्पण का भाव हो।
जहां जिसके प्रति पूर्णतया समर्पण है, वहां कोई शर्त नहीं होती। देव, गुरु और धर्म के प्रति समर्पण एवं भक्ति हो। प्राणवत्ती भक्त्ाि होती है, तो शक्ति का संचार हो सकता है। मूल तत्व आंतरिक भक्ति है। ऊपरी विधि का भी महत्व्ा है। जो रास्ता मैंने स्वीकार किया है, उसके प्रति समर्पण का भाव रहे। पूज्यवर ने ‘प्रभो! तुम्हारे पावन पथ पर’ गीत की कुछ पंक्तियों के साथ प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन शासन तेरापंथ्ा में जो संयम ग्रहण किया है, उसके प्रति भी समर्पण का भाव gks। भक्ति, समर्पण और श्रद्धा में किंतुपरंतु न हो तो उसमें शक्ति आ जाती है। प्राणवत्ती शक्ति आ जाती है। गुरु के प्रति भक्ति रक्षा कवच बन सकती है, व्यक्ति पापों से बच सकता है। भक्ति निश्चल हो।
पंच परमेष्ठी हमारे वंदनीय हैa, इनके प्रति भी हमारी भक्ति हो। नमस्कार मंत्र तो भक्ति का ही मंत्र है, जहां नमन ही नमन है। किसी के पैर में सिर रख देना कितनी बड़ी भक्ति है। भक्ति एक कर्म निर्जरा की साधना है। अपने द्वारा स्वीकार किए हुए नियमों के प्रति भी भक्ति हो। जिसके प्रति समर्पण हो,व्यक्ति उसके लिए कठिनाई झेलकर भी कार्य कर लेता है। गुरु के निर्देश के प्रति भी भक्ति हो। अपने आराध्य और धर्म के प्रति समर्पण भावना रहे।
दिगंबर हो या श्वेताम्बर हमारे कषायों से मुक्ति हो जाये तो मुक्ति मिल सकती है। हम वीतरागता की साधना करते हुए इस पथ पर आगे बढ़ें।
बोरीवली के त्रिमूर्ति दिगंबर जैन मंदिर के प्रांगण में पदार्पण कर आचार्य प्रवर ने फरमाया कि आज त्रिमूर्ति दिगंबर जैन मंदिर में आये हैं। यहां पर एवं बोरीवली में खूब धार्मिक साधना चलती रहे।
साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने कहा कि पूज्यवर अपनी यात्रा समेटते हुए चतुर्मासिक प्रवास स्थल की ओर अग्रसर हSa। भारतीय परंपरा में गुरु का उच्च स्थान बताया गया है।
गुरु को अनेक उपमाओं से उपमित किया गया है। जिसको जीवन में गुरु की प्राप्ति हो जाती है, उसका जीवन वहीं से शुरु हो जाता है। गुरु की कृपा सदैव बरसती रहती है। पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय तेरापंथी सभाध्यक्ष कैलाश बेताला का वक्तव्य एवं तेयुप व तेममं के सामूहिक गीत की प्रस्तुति हुई। त्रिमूर्ति दिगंबर जैैन मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष जिनेन्द्र किकावत ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ती nी। तेरापंथ समाज, बोरीवली ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने पूज्यवर से संकल्प स्वीकार किये।
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।