क्षायिक स्थिति पाने के लिए अपनी आत्मा के साथ अध्यात्म का युद्ध करें: आचार्यश्री महाश्रमण
बोरीवली eqacbZ 23 जून 2023
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के बोरीवली प्रवास का दूसरा दिन। मंगल देशना प्रदान कराते हुए युगदृष्टा ने फरमाया कि हमारी दुनिया में बुद्ध भी हुए हैं, तो युद्ध भी होते हैं। अनेक आत्माएं बोधि को प्राप्त कर बुद्ध बन जाती है। अतीत में अनेक बुद्ध हो गये हैं और अनागत काल में कितनेकितने जीव बुद्ध होगें। जो केवल ज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं या तीर्थंकर बन जाते हैं, वे बुद्ध ही होते हैa। ज्ञान बोधि, दर्शन बोधि, चारित्र बोधि, इनसे संपन्न हो जाना और केवल ज्ञान को प्राप्त हो जाना। क्षायक सम्यक्त्वी केवल ज्ञानी है ही, यह नियम नहीं है। तीन चीजें हो जाती हैa क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन और क्षायिक चारित्र। क्षायिक ज्ञान उत्पन्न हो गया तो क्षायिक दर्शन्ा और क्षायिक चारित्र तो आ ही गया। कारण इनके बिना क्षायिक ज्ञान तो पैदा हो ही नहीं सकता।
ज्ञान के दो प्रकार बताये गये हैं क्षायिक ज्ञान और क्षायोपशमिक ज्ञान। तीनों अज्ञान क्षायोपशमिक ही हैa। केवल ज्ञान क्षायिक ज्ञान हैa, शेष ज्ञान क्षायोपशमिक ज्ञान है। तीन अज्ञान क्षायोपशमिक ही है। क्षायिक दर्शन्ा मिल गया फिर वो जाता नहीं है, स्थायी है। क्षायिक ज्ञान भी स्थायी ही होगा। क्षायिक चारित्र मिलने पर फिर उससे नीचे की स्थिति नहीं आ सकती, ऊर्ध्वारोहण ही होगा। क्षायिक स्थिति पाने के लिए अध्यात्म का युद्ध करें, अपनी आत्मा के साथ युद्ध करें। बाहर के युद्ध के लिए शस्त्र चाहिये और आध्यात्मिक युद्ध के लिए शास्त्र चाहिये। जो शासन करता है, त्राण देता है, वह शास्त्र होता है। शास्त्रों से ज्ञान प्राप्त कर अपनी आत्मा के साथ युद्ध करें। बाहर का युद्ध क्या काम का? अपने आप को जीतकर हम सुख प्राप्त कर सकेंगे।
अध्यात्म युद्ध में मोहनीय कर्म हमारा शत्रु है। इस शत्रु को परास्त कर योद्धा बनने का प्रयास करनk चाहिये। इस युद्ध में योद्धा हमारी आत्मा ही है। क्रोध को उपशम से, अंहकार को मार्दव से, माया को आर्जव से और लोभ को संतोष रूपी शस्त्र से जीतें। आत्मा के साथ युद्ध अनेक जन्मों तक चलता है। कारण शत्रु भी तो प्रहार करते हैं, तो आत्मा परास्त सी हो जाती है पर युद्ध करतेकरते एक दिन सारे युद्ध समाप्त होकर आत्मा क्षायिक भाव को प्राप्त कर योद्धा बन जाती है। मुंबई में 1 जुलाई से 21 जुलाई 2023 तक प्रस्तावित इक्कीस रंगी तपस्या के संदर्भ में पूज्यवर ने फरमाया कि मुंबई में इक्कीस रंगी तपस्या का लक्ष्य रखा है, जो एक अच्छा प्रयास है। यह भी एक प्रकार का युद्ध ही है। इसके लिए सम्यक् पुरूषार्थ वांछनीय है।
साध्वीवर्याजी ने कहा कि लोभी व्यक्ति की इच्छा अंत को प्राप्त नहीं हो सकती। तृष्णा युक्त इच्छा से व्यक्ति दुःखी हो सकता है। इच्छाओं पर संयम का अंकुश लगाएं। हमें जीवन शैली को त्याग प्रधान बनाना होगा। साधना के अनेक उपक्रम हैa, उन पर ध्यान दिया जा सकता है। पूज्यवर के स्वागत में तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष मिलाप बाफणा, प्रवास व्यवस्था समिति संयोजक संजय बोथरा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। उपासक श्रेणी, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ किशोर मंडल, तेरापंथ कन्या मंडल, शांतिलाल दूगड़ ने गीत के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त किया। भारत जैन महामंडल द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘जैन जगत’की प्रति पूज्यवर के श्रीचरणों में अर्पित की गयी।
कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए मुनि दिनेशकुमारजी ने आत्मा के गुणों को समझाया।