आचार्यश्री महाप्रज्ञ का व्यक्तित्व अमाप्य था

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आचार्यश्री महाप्रज्ञ का व्यक्तित्व अमाप्य था

बीदासर
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की सुशिष्या समाधि केन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी रचनाश्रीजी के सान्निध्य में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के 104वें जन्मदिवस के उपलक्ष में कार्यक्रम का समायोजन किया गया। साध्वी रचनाश्रीजी ने अपने मंगल उद्बोधन में फरमाया ‘आचार्यश्री महाप्रज्ञजी कk जन्म खुले आकाश के नीचे हुआ। फलतः उनका व्यक्तित्व आकाश की तरह अमाप्य था। उनके चचेरे भाई महालचंद ने चार चीजें लाकर दी। घड़ी, कंघा, दर्पण, टार्च। इन चार चीजों की उपयोगिता के अनुसार ही आचार्यश्री के व्यक्तित्व के कुछ अंश को देखा जा सकता है। घड़ी के अनुरूप ही उन्होंने समय प्रबंधन का सूत्र दिया। कंघा केशों को सुलझाता है वैसे ही आपने विश्व की समस्या का समाधान दिया। दर्पण के अनुरूप ही प्रेक्षाध्यान के द्वारा भीतर देखना सिखाया और टार्च प्रकाश का साधन है वैसे ही आपने साहित्य का आलोक दिया।’
‘शासनश्री’ साध्वी अमितप्रभाजी ने गीत के माध्यम से आचार्यश्री के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। ‘शासनश्री’ साध्वी साधनाश्रीजी ने फरमाया कि आचार्र्यश्री महाप्रज्ञजी की प्रज्ञा विलक्षण रूप से जागृत थी। आचार्य तुलसी के कुशल हाथों ने भोले-भाले नत्थू का निर्माण इस प्रकार किया कि वे जनजन के पूज्य बन गए। साध्वी गीतार्थ प्रभाजी ने कविता प्रस्तुत की। साध्वी सन्मतिश्रीजी, साध्वी गौरवप्रभाजी, साध्वी जयंतयशाजी, साध्वी ॠजुप्रभाजी ने अपनेअपने भावों को अभिव्यक्त किया। तेरापंथी सभा के व्यवस्थापक रवि सेखानी, कमल बैद, डालचंद दूगड़, तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष चंदा गिड़िया ने क्रमशः विचार एवं गीत के माध्यम से महाप्रज्ञ के विलक्षण व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों द्वारा महाप्रज्ञ अष्टकम्‌‍ से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी कौशलप्रभाजी ने किया। ‘शासनश्री’ साध्वी यशोमतीजी के द्वारा रचित गीत को साध्वीवृंद ने सामूहिक रूप से प्रस्तुति दी।