सभी प्रकार के अहंकार से बचने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सभी प्रकार के अहंकार से बचने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

03 अगस्त 2023 नन्दनवन-मुम्बई 
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र की विवेचना करवाते हुए फरमाया कि आठ कर्मों में सातवां कर्म गौत्र कर्म है। गौत्र कर्म भी पुण्य और पाप दोनों रूपों में होता है। वेदनीय नाम गौत्र और आयुष्य- ये कर्म पुण्यात्मक भी होते हैं, पापात्मक भी होते हैं। शेष चार कर्म एकान्तक पाप कर्म ही होते हैं।  गौत्र कर्म के दो प्रकार है- उच्च गौत्र और नीच गौत्र। उच्च गौत्र कर्म शरीर प्रयोग बंध कर्म के हेतु है- जाति का मद न करना, कुल का मद न करना, बल का मद न करना, रूप का मद न करना, तप का मद न करना, श्रुत का मद न करना, लाभ का मद न करना, ऐश्वर्य का मद न करना। 
जो पुण्य के रूप में होता है, वह उच्च गौत्र कर्म कहलाता है और पाप के रूप में होता है, अशुभ रूप में होता है, वह नीच गौत्र कर्म कहलाता है। इनको सार संक्षेप में कहा जाये तो निरंहकार भाव उच्च गौत्र कर्म बंध का कारण है और मद-अहंकार भाव नीच गौत्र कर्म बंध का कारण है। अहंकार अनेक संदर्भों में हो सकता है। व्यक्ति को अपने कुल का अहंकार नहीं करना चाहिये। वर्तमान समय में जातिगत व्यवस्थाएं अलग-अलग होते हुए भी लोकतांत्रिक प्रणाली में जाति-कुल का महत्व नहीं है। 
किसी व्यक्ति के पास शारीरिक बल अच्छा हो सकता है, किसी व्यक्ति का चेहरा सुंदर हो सकता है, किसी व्यक्ति की काया अच्छी हो सकती है लेकिन इन सभी के अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिये। कभी किसी को अच्छे धन की प्राप्त हो सकती है, अच्छा ज्ञान किसी को प्राप्त हो सकता है। इनके अहंकार से भी बचना चाहिये। जाति, कुल, बल, रूप, तप, श्रुत, लाभ और ऐश्वर्य का मद न करें। पुण्य से यह प्राप्त हो सकते हैं। विनय-वन्दना से अहंकार मंद पड़ सकता है। हमें किसी प्रकार से अहंकार नहीं करना चाहिये। गृहस्थ जीवन में भी अहंकार न हो तो व्यक्ति के मान-सम्मान की वृद्धि हो सकती है। 
पूज्यवर ने कालूयशोविलास की विवेचना कराते हुए पूज्य कालूगणी के मालवा यात्रा के प्रसंगों के अंतर्गत जावरा में हुए विरोध आदि को विस्तार से समझाया।  साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने फरमाया कि हिंसा, चोरी, हत्या आदि कार्य करना बुरा कार्य है, पर आदमी इनसे निवृृत्त नहीं हो सकता है। बड़ी गलतियां आदमी जानबूझकर जानते हुए भी करता है। कर्मशास्त्र में कहा गया कि मोह कर्म के उदय से व्यक्ति गलत कार्य करता है। आत्मा में विकृति पैदा होती है। मोहनीय कर्म का बड़ा परिवार है, जो गलत कार्य करवाता है। सभी प्रकार के कषाय मोहनीय कर्म के परिवार के सदस्य हैं।
मासखमण की तपस्या के क्रम में पूज्यवर ने प्रदीप कुमार मुणोत, सपना चपलोत, अरविन्द व सपना कोठारी कोे सजोड़े़ उनके तप के प्रत्याख्यान करवाये एवं अन्य तपस्याओं के क्रम में मीना कोठारी को उनकी तपस्या का प्रत्याख्यान करवाया। रिटायर्ड कर्नल उदयकुमार ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।  कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।