बारहव्रत कार्यशाला के आयोजन

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बारहव्रत कार्यशाला के आयोजन

औरंगाबाद
मुनि अर्हतकुमारजी के सान्निध्य में तेरापंथ भवन में तेरापंथ युवक परिषद्, औरंगाबाद की ओर से बारह व्रत कार्यशाला का सप्त दिवसीय आयोजन किया गया। मुनि अर्हतकुमारजी नेे उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि समण संस्कृति का मूलभूत अंग है व्रत। जैन, बौद्ध आदि परंपराओं में जीवन के परिमार्जन की दृष्टि से व्रतों को अतिरिक्त मूल्य दिया गया है। उपभोक्ता वाले इस युग में भी जैन परिवारों में कुछ व्रतों को अनुष्ठान के रूप में स्वीकार किया जाता है। युग-परिवर्तन के बाद भी व्रतों के प्रति घनीभूत जन-आस्था उनके त्रैकालिक महत्व को उजागर करती है।
मनुष्य व्रत-चेतना के साथ आगे बढ़ेगा तो युगीन खतरों के बीच में भी अपने अस्तित्व को सुरक्षित रख सकेगा। श्रावक की पहली भूमिका है- सम्यक्त्व दीक्षा। सम्यक्त्व की पुष्टि के बाद श्रावक के द्वारा दूसरी भूमिका के रूप में व्रत दीक्षा स्वीकार की जाती है। व्रत दीक्षा का अर्थ है- असंयम से संयम की ओर प्रस्थान। एक गृहस्थ श्रावक पूरी तरह से संयमी नहीं हो सकता, पर वह असंयम की सीमा कर सकता है। इसी दृष्टि से भगवान महावीर ने उसके लिए बारह व्रत रुप संयम धर्म का निरुपण किया। इस अवसर पर मुनि भरतकुमारजी ने अपने मधुर स्वर में व्रत दीक्षा के महत्व पर एक गीत प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम के सफल आयोजन हेतु तेयुप उपाध्यक्ष एवं बारह व्रत कार्यशाला प्रभारी नितेश सेठिया के साथ संपूर्ण तेयुप साथियों ने अथक परिश्रम किया।