मुनि शांतिप्रिय जी के अनशन की संपन्नता पर
शांतिप्रिय मुनि ने किया,
बड़ा गजब का काम,
अपूर्व संथारा किया,
बना यशस्वी नाम।।
सेवा, जप, तप में सदा,
रहते थे वे लीन,
घेरा यद्यपि रोग ने,
किंतु बने नहीं दीन।।
वर्ष बहोत्तर में किया,
संयम पथ स्वीकार,
कृपा हुई गुरुराज की,
तभी बने अणगार।।
इठ्यासी की उम्र में,
मन में साहस धार,
अनशन पचखा भाव से,
किया आत्म उद्धार।।
समपरिणामी बन रहे,
धन्य-धन्य मुनिराज,
की सेवा मुनिवृंद ने,
मिला सुगुरु का स्हाज।।