ऋजुता और सरलता से आत्मा की षुद्धि संभव: आचार्यश्री महाश्रमण
02 अगस्त 2023 नन्दनवन-मुम्बई
तेरापंथ धर्मसंघ के दिव्य दिवाकर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्हत वाणी की अमृृत वर्षा कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया है- शुभ नाम कर्म शरीर प्रयोग बंध किस कर्म के उदय से होता है। नाम कर्म के द्वारा शरीर की सुन्दरता, वाणी का प्रभाव, तीर्थंकर नाम कर्म बंध वाली स्थितियां हो सकती है। किसी की बात को लोग स्वीकार कर लेते हैं, किसी की बात का लोग स्वीकरण नहीं करते, ये सारा नाम कर्म का अपना क्षेत्र है।
नाम कर्म के दो प्रकार हैं- शुभ नाम कर्म और अशुभ नाम कर्म। शुभ नाम कर्म का उदय होने पर अनुकूल स्थितियां प्राप्त होती है। अशुभ नाम कर्म का उदय होने पर जीव को प्रतिकूल परिस्थितियां प्राप्त होती है। भगवती सूत्र में शुभ नाम कर्म शरीर प्रयोग बंध के कारण बताए गये हैं- काया की ऋजुता, भाव की ऋजुता, भाषा की ऋजुता। एक शब्द में कारण समझें तो वह है- ऋजुतापूर्ण व्यवहार। ऋजुता और सच्चाई का गहरा संबंध है। झूठ और कपट का जोड़ा है एवं सच्चाई और सरलता का जोड़ा है। व्यक्ति को बच्चे की तरह सरल होना चाहिए किन्तु बच्चे की तरह नादान नहीं होना चाहिए। सार रूप में कहा जाए तो सरलतापूर्ण व्यवहार हो तो शुभ नाम कर्म का बंध होता है। अशुभ नाम कर्म शरीर प्रयोग बंध का कारण है- कटुता, वक्रता। मायाचार, वंचनापूर्ण व्यवहार इसके कारण हैं। यह सब पाप कर्म का बंध कराने वाले होते हैं। इससे व्यक्ति को जीवन में प्रतिकूलताएं प्राप्त होती है।
ऋजुतापूर्ण व्यवहार है, वह हमारी आत्मा के उत्थान का कारक है। वक्रता आत्मा का पतन करने वाला बन सकती है। इसलिए हमें वक्रता से बचने का प्रयास करना चाहिये। सरलता से शुद्धि होगी और शुद्ध आत्मा ही उत्थान की दिशा में आगे बढ़ सकती है। कर्म बंधे हैं तो भोगना ही पड़ेगा। प्रायश्चित्त कर कर्म भोगने से बच सकते हैं। हमें कथनी-करनी में समानता और जीवन में ऋजुता रखने का प्रयास करना चाहिये। कालूयशोविलास का सुन्दर विवेचन कराते हुए पूज्यवर ने पूज्य कालूगणी के मालवा प्रदेश पधारने के प्रसंग को समझाया। मासखमण की तपस्या के क्रम में पूज्यवर ने अंकिता बड़ाला, डिंपल बड़ाला एवं सारिका बड़ाला को उनकी तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।