आलोयणा-प्रायष्चित्त करने वाला बन सकता है आराधक: आचार्यश्री महाश्रमण
12 अगस्त 2023 नन्दनवन, मुम्बई
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगम वाणी की अमृत वर्षा कराते हुए फरमाया कि आगम में आराधना- विराधना के सन्दर्भ में बात बताई गई है। एक भिक्षु-साधु है, उसके साधुपन में कोई दोष या अकृत्य हो गया है। उस दोष की आलोचना प्रतिक्रमण किये बिना वह कालधर्म को प्राप्त हो जाता है तो उसके आराधना नहीं होती, वह विराधक हो जाता है। जो साधु उस दोष की आलोचना- प्रतिक्रमण कर चिरकाल धर्म को प्राप्त करता है तो उसके आराधना हो जाती है। एक साधु ने किसी दोष का सेवन कर लिया, वह सोचता है कि मैं अभी तो आलोचना नहीं करूंगा। मैं चरमकाल- आयुष्य पूरा होने के निकट इसकी आलोचना-प्रतिक्रमण कर लूंगा, विशुद्धि कर लूंगा, पर आयुष्य का तो पता नहीं। वह बीच में ही कालधर्म को प्राप्त हो जाता है, तो उसके आराधना नहीं होती है।
एक साधु जिसके कृत्य स्थान का दोष हो गया, वह सोचता है कि गृहस्थ श्रावक भी तो कालधर्म प्राप्त कर देवलोक में पैदा होते हैं। मैंने गलती तो की है, पर मुझे भी देवलोक में कहीं तो स्थान मिल सकेगा। उसको आराधना प्राप्त नहीं होती। यह प्रसंग चारित्रात्माओं को एक विशेष दिशा-निर्देश देने वाला है कि कृत दोष का सेवन कर आलोयणा-प्रतिक्रमण न करने वाला विराधक है और आलोयणा- प्रतिक्रमण करने वाला आराधक बन सकता है। समय पर अपना काम हो जाये, बाद का कुछ पता नहीं लगता, क्या स्थिति बन जाये पता नहीं। जो भी दोष लग जाये तो तुरन्त आलोयणा-प्रायश्चित्त गुरु से ग्रहण कर उसका निर्वहन कर लें।
पूज्यवर ने कालूयशोविलास का विवेचन कराते हुए पूज्य कालूगणी की स्वास्थ्यगत स्थिति एवं आचार्यश्री कालूगणी की समताभाव और सहनशीलता को व्याख्यायित किया।साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने फरमाया कि क्रोध-प्रीति का, मान-विनय का, माया-मित्रता का और लोभ सबका विनाश कर देता है। लोभ कषाय दसवें गुणस्थान तक रहता है जबकि तीन कषाय उससे पहले नाश को प्राप्त हो जाते हैं। लोभ पाप का बाप है। लोभ को क्षय किये बिना मुक्ति नहीं मिलती। वेदनीय कर्म के उदय से आत्मा में होने वाली इच्छा-लालसा लोभ है। लोभ कषाय से युक्त व्यक्ति अनर्थकारी प्रवृत्ति कर सकता है। उदयपुर के सांसद रघुवीर मीणा ने पूज्यवर के दर्शन किये एवं अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यवर ने भी आशीर्वचन फरमाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।