आचार्य भिक्षु जन्म दिवस, बोधि दिवस एवं चातुर्मासिक चतुर्दशी कार्यक्रम
शाहदरा
साध्वी अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में विवेक विहार ओसवाल भवन में आचार्य भिक्षु जन्म दिवस, बोधि दिवस एवं चातुर्मासिक चतुर्दशी का प्रेरणादायी एवं श्रद्धा अभिवर्जित करने वाला कार्यक्रम आयोजित हुआ। साध्वी अणिमाश्री जी ने श्रद्धासिक्त उद्गार व्यक्त करते हुए कहा- ‘कंटालिया की पुण्य धरा पर त्रयोदशी के दिन माँ दीपा की रत्न कुक्षी से सिंह स्वप्न के सिंह पुरुष आचार्य भिक्षु का जन्म हुआ। आचार्य भिक्षु का जन्म सत्य, अहिंसा, आचार निष्ठा, मर्यादा निष्ठा, आगम निष्ठा का जन्म था। आचार्य भिक्षु का जन्म सम्यक चिंतन, उपशम भाव एवं समता की साधना का जन्म था। आचार्य भिक्षु का जन्म श्रद्धा, समर्पण एवं सेवा भावना का जन्म था। आचार्य भिक्षु का जन्म बोधि का जन्म था। राजनगर में उनको बोधि प्राप्त हुई और उसी बोधि की निष्पति है- हमारा तेरापंथ। तेरापंथ के प्रणेता आचार्य भिक्षु को श्रद्धा नमन।’
डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी ने कहा- आचार्य भिक्षु अनुकरणीय कथा है उस पुरुषोत्तम की जिसकी कथनी-करनी में द्वेत नहीं था। वे जैसा बोलते थे, वही करते थे। साध्वी कार्णिकश्रीजी एवं साध्वी समत्वयशाजी ने बोधि दिवस पर शानदार गीत की प्रस्तुति दी। साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने मंच संचालन किया। साध्वी अणिमाश्रीजी ने चातुर्मासिक चतुर्दशी पर हाजरी का वाचन एवं चातुर्मास की महत्ता को व्याख्यातित करते हुए कहा- ‘चातुर्मास का समय आत्मा रूपी दीपक को प्रज्वलित करने का समय है। तप, जप, ज्ञान, ध्यान की गंगोत्री अवगाहन करने का समय है। पूज्यप्रवर ने महती कृपा कर पावस बगसाया है, पूरा लाभ उठाएं। तेरापंथ की मर्यादा व अनुशासन को प्राणाधिक मानकर अपने व्यक्तित्व को संवारें।’
डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी ने मंच संचालन करते हुए कहा- चातुर्मास का समय सोकर खोने का नहीं, जागने का समय है। साध्वी समत्वयशाजी ने चातुर्मासिक प्रेरणा गीत की सुंदर प्रस्तुति दी। साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने मंगल संगान कर वातावरण को मंगलमय बनाया। सभा मंत्री सुरेश सेठिया ने उपस्थित श्रावक-श्राविका समाज को श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन करवाया।