सिद्धि तप अभिनंदन कार्यक्रम संपन्न
साउथ कोलकाता
मुनि जिनेशकुमारजी के सान्निध्य एवं तेरापंथी सभा के तत्त्वावधान में प्रेम गुलगुलिया के सिद्धि तप का तपोभिनंदन कार्यक्रम तेरापंथ भवन में आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुनि जिनेशकुमारजी ने कहा- ‘हर व्यक्ति शक्ति संपन्न बनना चाहता है। शक्ति संपन्नता के लिए साधना जरूरी है। तपस्या के बिना साधना सफल नहीं हो सकती है। जैसे सूर्य और अग्नि का ताप मलों की शुद्धि करता है वैसे ही जैविक विद्युत का ताप भी मलों की शुद्धि करता है। तप का अर्थ है तपना। जो आठ कर्माे को तपाता है वह तप है। तप भारतीय संस्कृति व जैनदर्शन का मूल प्राण है। जिस प्रकार छोटा-सा चिराग सघन अंधकार का नाश करता है, वैसे ही छोटा सा तप जन्म जन्मातर के कर्म क्षय कर देता है।’ मुनिश्री ने आगे कहा कि कर्म तप बाह्य व आंतरिक दोनों प्रकार के होते हैं। बाह्य तपस्या के साथ आंतरिक तपस्या का भी बहुत महत्व है। स्वाध्याय, ध्यान, विनय, सेवा, समता आंतरिक तपस्या है। जिनशासन में एक से एक बढ़कर तपस्वी संत हुए हैं, जिन्होंने तप के द्वारा आत्म उत्थान के साथ जिनशासन की प्रभावना बढाई है। तप से आत्मा उज्ज्वल होती है। बहिन प्रेम गुलगुलिया ने सिद्धि तप करके अद्भूत साहस का परिचय दिया है। इसमें एक से आठ तक की लड़ी होती है। एक उपवास करना भी कठिन काम होता है। लेकिन इतनी बड़ी तपस्या करके गण की शोभा बढाई है। भाई-बहिनों ने पंचरंगी तप भी किया है। वे सब साधुवाद के पात्र हैं।
इस अवसर पर मुनि परमानंदजी ने कहा कि जीवन की पवित्रता के अनेक आधार माने गए हैं, उनमें एक महत्वपूर्ण आधार तप है। तप से आत्मा का शोधन होता है व कल्मष धुल जाता है। मुनि कुणालकुमारजी ने गीत का संगान किया। तप अभिनंदन में तेरापंथ सभा अध्यक्ष विनोद चौरड़िया ने साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी के संदेश का वाचन एवं दिलीप चौपड़़ा ने अभिनंदन पत्र का वाचन किया। तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष पद्मा कोचर, इचलकरंजी से समागत जैन कार्यवाहिनी सदस्य जवाहरलाल भंसाली, रचना बांठिया, परिवार की महिलाएं आदि ने अपने भावों की प्रस्तुति दी। कार्यकम का संचालन मुनि परमानंदजी ने किया।