बारह व्रत कार्यशाला के विविध आयोजन
सिकन्दराबाद
तेरापंथ भवन सिकन्दराबाद में साध्वी डॉ.मंगलप्रज्ञाजी के सान्निध्य में अभातेयुप निर्देशित एवं तेरापंथ युवक परिषद्, हैदराबाद द्वारा आयोजित बारह व्रत कार्यशाला में विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए साध्वीश्री ने कहा- ‘हम अनन्तकालीन यात्री हैं। इस त्रैकालिक यात्रा में हमने अनन्त की यात्रा कई बार कर ली है। स्वर्ग के आनंद को हमने चखा है। नरक, तिर्यंच गति में भी जाकर आए हैं। अब यह मनुष्य जीवन का महत्त्वपूर्ण पड़ाव हमें प्राप्त हुआ है। इसे व्रत-संयम के साथ जीएं। जिस यात्रा में प्रकाश, आनंद और शक्ति की अनुभूति होती है, उसका आदि बिंदु है- सम्यक् दर्शन। आत्मदर्शन की दिशा का पहला पड़ाव है- सम्यक् दर्शन। व्रत चेतना की और प्रस्थान करने वाली यात्रा श्रावकत्व की ओर प्रस्थान करती है। श्रावकत्व जब घनीभूत हो जाता है तब सम्यकत्व की ओर गति हो सकती है। व्रतों में आत्मा अत्यन्त लीन होकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त बन जाती है।’
साध्वीश्री ने कहा- ‘भगवान महावीर ने दो प्रकार के धर्म की प्ररूपणा की है। जन्म से जैन अनुयायी बन सकते हैं, श्रावक नहीं, व्रत चेतना से जुड़कर श्रावक बना जा सकता है। व्रत जीवन का सुरक्षा कवच है। अध्यात्म व्रतों की चर्चा अध्यात्म की चर्चा है। बारह व्रत कार्यशाला का आयोजन संबोध प्रदान करने वाला है। जैन श्रावक के जागने का समय आया है। आचार और विचार की शुद्धि आवश्यक है। करुणा और संवेदनशीलता से ही व्रत की चेतना पुष्ट होती है। आहार, व्यवहार, विचार और वाणी का संयम हो।’
साध्वी सुदर्शनप्रभाजी एवं साध्वी राजुलप्रभाजी द्वारा गीत के संगान से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। साध्वी चैतन्यप्रभाजी ने कहा- ‘हर श्रावक-श्राविका तत्त्वज्ञान की गंगा में अभिस्नात होकर आत्मिक आनंद की अनुभूति करे।’
उपासक श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक एवं बारह व्रत कार्यशाला के मुख्य प्रशिक्षक सूर्यप्रकाश सामसुखा ने बारहव्रतों की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा- ‘बारह व्रतों की साधना आनन्द की साधना है। संयम की विशिष्ट साधना है। श्रावक समाज इन व्रतों को स्वीकार कर बारहव्रती बनने का प्रयास करे।’
कार्यक्रम का संचालन साध्वी सिद्धियशाजी ने किया।