वैर भाव को समाप्त कर आत्मा की निर्मलता का हो प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण
11 अगस्त 2023 नन्दनवन मुम्बई
शान्तिदूत-युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में हिंसा की बात बतायी जा रही है। अहिंसा को जानने के लिए हिंसा को जानना अपेक्षित हो सकता है। अहिंसा का भाव जीवन में रखना है तो हिंसा होती क्या है, इसका ज्ञान होना आवश्यक होता है।
एक प्रश्न किया गया कि एक आदमी किसी पुरुष का हनन कर रहा है, वह पुरुष वैर से स्पृष्ट होता है अथवा वो नो-पुरुष वैर से स्पृष्ट होता है। उत्तर दिया गया कि गौतम! पुरुष हनन करने वाले नियम से पुरुष वैर से स्पृष्ट होता है। शत्रुता की परम्परा कई जन्मों तक चल सकती है। बदला लेने की भावना हो सकती है। भगवान पार्श्व का कमठ के साथ कई जन्मों तक वैर का अनुबन्ध चला था।
जैसे वैर की परम्परा चलती है तो स्नेह की परम्परा भी चलती है। मित्रता का अनुबन्ध भी कई जन्मों तक चल सकता है। रागानुबन्ध और द्वेषाबन्ध दोनों हो सकते हैं। हिंसा और वैर की बात कर्मवाद के संदर्भ में और राग-द्वेष बन्धन में बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। इसलिए किसी से कोई वैर हो जाये तो उससे खमत-खामणा करके बात को वहीं समाप्त कर देनी चाहिये।
जैन धर्म में संवत्सरी मैत्री और खमत-खामणा का संबंध चलता है, बहुत बढ़िया है। क्षमा कर दो, क्षमा मांग लो। आपस में व्यक्तिगत रूप में खमत- खामणा की परम्परा भी चलती है। खमत-खामणा कर लेने से चेतना की निर्मलता हो सकती है। खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मेत्ती मे सव्व भूएसु, वैरं मज्झं न केणई।। राजनैतिक लोगों में भी खमत-खामणा हो जाये तो बढ़िया है।
खमत-खामणा की विधि का हम उपयोग करते रहें तो संभव है वैर-विरोध समाप्त हो जाये, मन हल्का पड़ जाये। वैर भाव को समाप्त कर अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करें एवं अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ने का प्रयास करें।
पूज्यवर ने कालूयशोविलास का विवेचन कराते हुए परमपूज्य कालूगणी के हाथ में वेदना के प्रसंग को व्याख्यायित किया।
पूज्यवर ने साध्वी काव्यलताजी को अठाई का प्रत्याख्यान करवाया। प्रकाश परमार, अरूणा मादरेचा एवं पीयूष दूगड़ ने अपनी तपस्या के पूज्यवर से प्रत्याख्यान ग्रहण किये। तनसुखलाल बैद ने अपनी कृति ‘आचार्यांजलि’ पूज्यवर को अर्पित की। पूज्यवर ने आशीर्वचन फरमाया। प्रज्ञा चक्षु शांतिलाल चोरड़िया ने गीत की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश- कुमारजी ने किया।