मनोनुशासनम्
एकाग्रता
प्रेक्षा से अप्रमाद (जागरूक भाव) आता है। जैसे-जैसे अप्रमाद बढ़ता है। वैसे-वैसे प्रेक्षा की सघनता बढ़ती है। हमारी सफलता एकाग्रता पर निर्भर है। अप्रमाद या जागरूक भाव बहुत महत्त्वपूर्ण है। शुद्ध उपयोग-केवल जानना और देखना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। किन्तु इनका महत्त्व तभी सिद्ध हो सकता है जब ये लंबे समय तक निरन्तर चलें। देखने और जानने की क्रिया में बार-बार व्यवधान न आए, चित्त उस क्रिया में प्रगाढ़ और निष्प्रकम्प हो जाए। अनुवस्थित अव्यक्त और मृदुचित्त ध्यान की अवस्था का निर्माण नहीं कर सकता। पचास मिनट तक एक आलंबन पर चित्त की प्रगाढ़ स्थिरता का अभ्यास होना चाहिए। यह सफलता का बहुत बड़ा रहस्य है। इस अवधि के बाद ध्यान की धारा रूपान्तरित हो जाती है। लंबे समय तक ध्यान करने वाला अपने प्रयत्न से उस धारा को नये रूप में पकड़कर उसे और प्रलंब बना देता है।