अष्टम् आचार्य कालूगणी महाप्रयाण दिवस
कानपुर
कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वीश्री संगीतश्रीजी के महामंत्राचार से हुआ। सर्वप्रथम पूनम चंद सुराणा ने आचार्य तुलसी द्वारा रचित गीतिका ‘भजिए निस दिन कालू गणिन्द’ का संगान किया। साध्वी संगीतश्रीजी ने अष्टम् आचार्य की स्मृति में कहा कि वह बड़े प्रभावशाली और पुण्यवान आचार्य थे। उनका प्रभाव इतना तीव्र था कि विरोधीजन भी उनसे अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकते थे। उनके युग में समाज की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार की उन्नति हुई। सभाध्यक्ष धनराज सुराणा ने आचार्य कालूगणी के जीवन से संबंधित अनेक रोचक घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया। सभा मंत्री संदीप जम्मड़ ने अपने वक्तव्य में कहा कि तेरापंथ का क्षेत्र विस्तार और संस्कृत भाषा का विकास आचार्य कालूगणी द्वारा हुआ। साध्वी शांतिप्रभाजी ने फरमाया कि आचार्य कालूगणी का सबसे बड़ा अवदान तेरापंथ धर्मसंघ में दो आचार्य- आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के रूप में मिला है। साध्वी कमलविभाजी ने फरमाया कि आचार्य कालूगणी के समय में साधुओं के वस्त्र, पात्र, रजोहरण आदि उपकरणों में कला का विकास हुआ था। तेरापंथी सभा, तेरापंथ महिला मंडल और तेरापंथ युवक परिषद् के संयुक्त प्रयास से अष्टम् आचार्य कालूगणी का निर्वाण दिवस साध्वीवृंद की प्रेरणा से मनाया गया।