भीतरी अंधकार मिटाने के लिए ज्ञान की ज्योति जलाएँ : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भीतरी अंधकार मिटाने के लिए ज्ञान की ज्योति जलाएँ : आचार्यश्री महाश्रमण

अंधेरी, 3 दिसंबर, 2023
जन-जन को नशामुक्ति का पाठ पढ़ाने वाले अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी वृहत्तर मुंबई के उपनगरों की यात्रा करते हुए आज अंधेरी पधारे। परम पावन ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन साधना पद्धति में संवर और निर्जरा ये दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। धर्म इन दो में समाविष्ट हो सकता है। पाप कर्म के आगमन के रास्ते को रोक देना संवर होता है और पूर्व अर्जित जो पाप कर्म है, उनको नष्ट करना निर्जरा हो जाती है।
संवर और निर्जरा में एक अपेक्षा से संवर बहुत महत्त्वपूर्ण है। निर्जरा तो बहुत से प्राणियों के होती है, पर संवर हर किसी प्राणी के नहीं होता। तात्त्विक भाषा में तो चैथे गुणस्थान के बाद हमारे शास्त्रों में संवर की बात बताई गई है, जबकि निर्जरा तो पहले गुणस्थान में भी हो सकती है।
संवर का सबसे सशक्त माध्यम है-स्वाध्याय। स्वाध्याय करने के लिए बाह्य प्रवृत्ति से निवृत्त होना होगा। नींद से भी निवृत्त होना पड़ता है। व्यर्थ बातों से विरत होना होता है। स्वाध्याय के प्रति समर्पण और आकर्षण का भाव हो तो अच्छा ज्ञान प्राप्त हो सकता है।
अध्ययन-अध्यापन के लिए योग्य गुरु और योग्य विद्यार्थी हो। अच्छी पुस्तकें भी चाहिए। स्थान भी साफ और शांत हो। इनसे ज्ञान का द्वीप प्रज्ज्वलित हो सकता है।
आज अंधेरी आए हैं। आचार्य भिक्षु से जुड़ी मेवाड़ में केलवा की अंधेरी ओरी भी है। अंधकार भीतर का दूर हो, इसके लिए ज्ञान की ज्योति जलाने की अपेक्षा होती है। दुनिया में अनेक ज्ञान प्राप्ति के स्थान हैं। ज्ञान प्राप्ति के प्रति विद्यार्थियों का रूझान भी है। ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार, अच्छे आचार भी हों। आचारविहीन ज्ञान या ज्ञानविहीन आचार है तो दोनों अधूरे हैं। जीवन विज्ञान से विद्यार्थियों में धर्म, अध्यात्म, योग इनका भी उपक्रम चले।
परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने बहुत अध्ययन-अध्यापन किया था। ग्रंथों से कितना ज्ञान धर्म का, अध्यात्म विद्या का प्राप्त किया जा सकता है। अच्छी बात है कि दुनिया में संतों का विहरण होता है। संतों से लोगों को प्रेरणाएँ मिलती हैं। संतों की संगति से ज्ञान प्राप्ति हो सकती है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि ऋषियों के लिए विहार-चर्या को प्रशस्त माना गया है। आचार्यश्री जहाँ-जहाँ पधारते हैं, लोग आपके प्रति आकर्षित हो प्रभावित होते हैं। अनेक जैन-अजैन लोग पूज्यप्रवर के संपर्क में आते हैं। अन्य आम्नाय की साधु-साध्वियाँ भी पूज्यप्रवर की सन्निधि में पहूँचते हैं और एक ऊर्जा का रसास्वाद करते हैं।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्थानीय सभाध्यक्ष चैनरूप दुगड़, मंत्री ललित लोढ़ा, ज्ञानशाला, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ कन्या मंडल, क्षेत्रीय संसद सदस्य गजानंद कीर्तिधर ने अपनी भावाव्यक्ति की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।