आत्मकल्याण के लिए करें मानव शरीर का सदुपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण
अंधेरी, 5 दिसंबर, 2023
अंधेरी प्रवास के तीसरे दिन संयम के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि मानव शरीर बहुत महत्त्वपूर्ण है। देवता हो या नारकीय जीव उनके पास इतना अच्छा शरीर नहीं है। मनुष्यों के पास औदारिक शरीर है, जबकि देवों और नारकीय जीवों के वैक्रिय शरीर होता है। आहारक शरीर भी अच्छा हो सकता है, पर एक अपेक्षा से वह भी उतना अच्छा नहीं है।
औदारिक शरीर स्थूल शरीर है। चैथे गुणस्थान से ऊपर की जो साधना है, वो इस औदारिक शरीर की स्थिति में हो सकती है। आहारक शरीर में छठे गुणस्थान की योग्यता हो सकती है। औदारिक शरीर साधना का मंदिर बन सकता है। मनुष्य के रूप में हमें औदारिक शरीर प्राप्त है, यह सौभाग्य की बात है। आत्मकल्याण के लिए इस शरीर का उपयोग करें।
वार्धक्य में आदमी परवश हो सकता है। शरीर में व्याधि न बढ़े, इंद्रियाँ क्षीण हो जाएँ तब तक धर्म का समाचरण कर लेना चाहिए। शरीर को नौका कहा गया है। जीव नाविक है। यह संसार महा समुद्र है। महर्षि लोग इसको तर जाते हैं।
वह माता भी धन्य होती है, जिसकी संतान गृहस्थ को छोड़ कर साधुत्व को स्वीकार कर लेती है। आदमी को गृहस्थावस्था में रहकर भी आध्यात्मिक-धार्मिक साधना व सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि मैत्री की भावना से व्यक्ति गुण संपन्न हो सकता है। दूसरे प्राणियों के प्रति आत्मिक-हित चिंतन करना मैत्री की भावना है। मधुर भाव से शत्रु भी मित्र बन सकता है। मैत्री भावना वाला कभी दूसरों का अहित चिंतन नहीं करता है। हमें भीतर की गं्रथियों को खोलकर निग्र्रन्थ बनना है।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्वागताध्यक्ष प्रिया जैन, उम्मेद नाहटा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई। तेयुप अंधेरी के युवकों ने गीत की प्रस्तुति दी। बर्सोवा विधायक भारती लावेकर ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।