समय का हो सम्यक् उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

समय का हो सम्यक् उपयोग : आचार्यश्री महाश्रमण

चरण स्पर्श की आज्ञा प्रदान कर पूज्यप्रवर ने श्रावक समाज पर बरसायी कृपा

कांदिवली, 29 नवंबर, 2023
जन-जन के उद्धारक आचार्यश्री महाश्रमण जी नंदनवन का सफलतम ऐतिहासिक चातुर्मास संपन्न कर कांदिवली पधार गए थे। कांदिवली भवन में 2003 का आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का मर्यादा महोत्सव भी हुआ था। परम पुरुष ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि सृष्टि में मानो अपनी व्यवस्थाएँ बनी हुई हैं। सूर्य-चंद्रमा अपने ढंग से कार्य करते हैं। लोकाकाश में धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय भी व्यापक है। पुद्गल-जीव भी इस सृष्टि में है। काल का भी वर्तन होता रहता है। जो वर्तमान है, वह काल महत्त्वपूर्ण है। जो बीत गया वो चला गया है। जो आने वाला है, वो आएगा तब हमारे काम आएगा।
भविष्य करणीय नहीं है। करणीय वर्तमान काल है। हमारे यहाँ दिन-रात की व्यवस्था है। दिन-रात बीत रहे हैं। शास्त्रकार ने कहा कि जो रात बीत जाती है वह लौटती नहीं है। धर्म करने वाले की रात्रियाँ सफल हो जाती हैं। अधर्म करने वाले की रात्रियाँ असफल रह जाती है। समय का क्या उपयोग करना चाहिए, यह एक महत्त्वपूर्ण बात है।
समय तो हर जीव का बीतता है। हम मनुष्य हैं, जो विवेकशील हैं, हमको यह ध्यान देना चाहिए कि मैं समय का बढ़िया उपयोग करूँ। रात को सोते समय यह चिंतन करना चाहिए कि आज का जो दिन बीता है, इस काल में मैंने क्या बढ़िया या घटिया काम किया। क्या करना चाहिए था, पर कर नहीं सका। जीवन का एक-एक खंड ये सूर्य रोज ले जाता है। अगर सुकृत कार्य किया है, तो आज का दिन सुफल-सफल बीता है।
वह समय खराब है, जो समय किसी का पाप में बीता है। बुद्धिमान व्यक्ति अपना समय शास्त्र की बात में लगाता है। मूर्ख आदमी का समय व्यसनों और आलस में या लड़ाई-झगड़े में बीत जाता है। आदमी की दिनचर्या अच्छी रहे। समयबद्ध कार्य हो। चारित्रमोहनीय व क्षयोपशम हो तो मुनीत्व प्राप्त हो सकता है। चारित्र के जीवन में समता-चित्त समाधि बनी रहे। बुढ़ापा हावी न बन जाए। ध्यान की साधना भी चलती रहे। आज कांदिवली भवन में आए हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का अब्दुल कलाम जी के साथ यहाँ मिलन हुआ था।
पूज्यप्रवर ने नवदीक्षित मुनि ध्यानमूर्ति जी को छेदोपस्थापनीय चारित्र ग्रहण करवाते हुए पाँच महाव्रत व छठे रात्रि भोजन विरमण व्रत को विस्तार से समझाकर छेदोपस्थापनीय चारित्र में स्थापित किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि दुनिया में अनेक शक्तियाँ काम कर रही हैं, उनमें मुख्य हैµधन की शक्ति, राज्य की शक्ति और अध्यात्म की शक्ति। सबका अपना-अपना मूल्य है, पर अध्यात्म की शक्ति सर्वोपरी है। अध्यात्म का सुख शाश्वत सुख है, वर्तमान की तनावपूर्ण जीवनशैली में अध्यात्म की शक्ति चित्त समाधि प्रदान करने वाली है।
शासनश्री साध्वी विद्यावती जी ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपनी अभिवंदना अभिव्यक्त की। शासनश्री साध्वी विद्यावती जी ‘द्वितीय’ की सहवर्ती साध्वियों ने भी पूज्यप्रवर के प्रति अपनी अभिवंदना व्यक्त की। विनोद बोहरा, सभाध्यक्ष पारसमल दुगड़ एवं मनोहर गोखरू ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना की। पूज्यप्रवर ने पुरुषों के लिए सायं 8 बजे से लगभग 8ः15 तक चरण स्पर्श की घोषणा करवाई।