विवेकपूर्ण पुरुषार्थ है सफलता का आधार : आचार्यश्री महाश्रमण
सांताक्रुज, 9 दिसंबर, 2023
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने सांताक्रुज प्रवास के दूसरे दिन मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि वह माता शत्रु है, पिता दुश्मन है जो अपने बच्चे को पढ़ाते नहीं हैं। वे माता-पिता भी चाहे-अनचाहे बच्चे के साथ दुश्मनी करते हैं, जो अपने बच्चे को साधते नहीं हैं। संस्कारी और मजबूत नहीं बनाते हैं। अच्छी शिक्षाओं से संपन्न नहीं बनाते हैं। अनपढ़ आदमी व्यापार करने में असमर्थ होता है। आदमी के जीवन में भाग्य का भी अपना योगदान होता है। पुरुषार्थ का भी योगदान होता है। जैन दर्शन में कर्मवाद का सिद्धांत है, जो भाग्यवाद से जुड़ा सिद्धांत है। पूर्व अर्जित कर्मों से बहुत सी सुविधाएँ मिल सकती हैं, तो कठिनाइयाँ और दुःख भी प्राप्त हो सकते हैं।
भाग्यवाद जानने की चीज है। करने की चीज पुरुषार्थवाद है। वह अभागा आदमी होता है, जो भाग्य भरोसे बैठा रहता है। पुरुषार्थ न करने वाला सामान्यतया अभागा आदमी होता है। जो पुरुषार्थशील होता है, लक्ष्मी उसके पास जाती है। पुरुषार्थ करने पर भी यदि सिद्धि नहीं मिलती है, तो उसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। विवेकपूर्ण पुरुषार्थ करना यह सफलता का एक आधार बनता है। नियतिवाद भी एक सिद्धांत होता है, पर पुरुषार्थ करना आवश्यक है। उठो, जागो तो सफलता मिल सकेगी। महत्त्व-भूमिका अपनी-अपनी हो सकती है। शास्त्रों में तीन वणिक पुत्रों का दृष्टांत मिलता है। प्रथम वणिक पुत्र ने जुए में सारी पूँजी गँवा दी। दूसरा वणिक पुत्र भी ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था। पूँजी बैंक में जमा कर दी और ब्याज से काम चलाने लगा। मूल पूँजी सुरक्षित रखी।
तीसरा वणिक पुत्र अच्छा पढ़ा-लिखा था और भाग्य ने भी साथ दिया। व्यापार शुरू किया और अच्छी सफलता मिली। आर्थिक स्थिति से सुदृढ़ हो गया। बारह वर्षों बाद तीनों भाई मिले और गाँव पहुँचे। तीसरे भाई ने पूँजी को बहुत बढ़ा लिया। दूसरे ने मूल पूँजी सुरक्षित रखी तथा पहले ने तो मूल ही गँवा दी। यह एक दृष्टांत है। हम इसे धर्म-अध्यात्म की दृष्टि से देखें। मानव जीवन एक पूँजी है, जो हमें मिली है। जो ज्यादा पाप कर्म करता है, वह नरक में जा सकता है। झूठ-कपट करने वाला तिर्यंच बन सकता है। यह पहले वणिक पुत्र के समान है, जिसने मूल मानव जन्म को गँवा दिया और नीचे चला गया। जो ज्यादा पाप या धर्म नहीं करता है, सामान्य जीवन जीता है, सरल है वह पुनः मनुष्य गति में पैदा हो सकता है। मूल पूँजी सुरक्षित रह गई।
एक आदमी जीवन में त्याग, तपस्या, संयम करता है, वह मरकर देव गति में उत्पन्न हो सकता है। उसने तीसरे वणिक पुत्र की तरह खूब कमाई कर मूल पूँजी बढ़ा ली। हमें महत्त्वपूर्ण मानव जीवन प्राप्त है। हम इस अवसर का लाभ उठाने का प्रयास करें। संयम और तप की साधना-आराधना करने का प्रयास करें। सांताक्रुज में प्रवास हो रहा है। आज अजरामर आम्नाय की साध्वियाँ भी यहाँ आई हैं। साध्वी भक्तिकुमारी जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्वागत अध्यक्ष नरेश खाब्या, महिला मंडल, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी की सुंदर प्रस्तुति हुई। ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।