मोक्ष तभी मिलेगा जब आत्मा निर्मल बन जाएगी : आचार्यश्री महाश्रमण
सांताक्रुज, 8 दिसंबर, 2023
माया नगरी, मुंबई के उपनगरों की यात्रा करते हुए शांतिदूत आज सांताक्रुज प्रवास हेतु पधारे। सांताक्रुज मुंबई के एयरपोर्ट का केंद्र है। यहाँ पूज्यप्रवर का चार दिवसीय प्रवास होने जा रहा है।आर्हत् वाङ्मय के व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की वर्षा करते हुए फरमाया कि अध्यात्म का सिद्धांत है कि आत्मा शाश्वत तत्त्व है। आत्मा हमेशा थी, है और रहेगी। संसार में भ्रमण करने वाली जो आत्माएँ हम हैं, वह कर्मों से युक्त है। बहुत सी आत्माएँ मलिन होती हैं। मोक्ष तभी होगा जब आत्मा निर्मल बन जाएगी। सर्वदुःख मुक्ति तभी होगी जब आत्मा पूर्णतया कर्ममुक्त हो जाएगी।
शास्त्रकार ने बताया है कि आत्मा को निर्मल बनाने के लिए स्वाध्याय करो। दूसरा उपाय बताया-ध्यान करो। दुनिया में अनेक जगह योग-ध्यान के केंद्र भी चलते हैं। ध्यान एक साधना का प्रयोग है। साधु के लिए तो ये अनिवार्य है, पर गृहस्थ भी ध्यान-स्वाध्याय का अपने जीवन में प्रयोग करे। अनेक ध्यान पद्धतियाँ हैं। हमारे यहाँ आचार्यश्री तुलसी के समय आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के योग से प्रेक्षाध्यान का प्रादुर्भाव हुआ, जो आज प्रसिद्धि को प्राप्त है। प्रवृत्ति के साथ निवृत्ति का भी अभ्यास करें। शरीर, वाणी और मन की चंचलता को कम कर निर्विचारता का प्रयास करें।
मन तो दुष्ट घोड़ा है, जो हर समय दौड़ता रहता है, इस पर लगाम लगाने का प्रयास करें। अभ्यास से मन पर कंट्रोल किया जा सकता है। वैराग्य भाव के साथ निरंतरता एवं श्रद्धा के समन्वय से ध्यान का प्रयोग व्यक्ति को अध्यात्म साधना पथ पर आगे बढ़ा सकता है, सर्वदुःख मुक्ति तक पहुँचा सकता है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, शांतिपूर्ण जीवन। भौतिक संसाधनों से शांति उपलब्ध नहीं होती। शांति तो अपने भीतर है। जो व्यक्ति इच्छाओं की सीमा कर निस्पृह बन जाता है, ममत्व से रहित हो जाता है, वह शांति को प्राप्त कर सकता है। एस0 एन0डी0टी0 काॅलेज से उज्ज्वला राउत एवं स्थानीय सभाध्यक्ष राजेंद्र नौलखा ने श्रीचरणों में अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।