प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव रखने वाले अभयमूर्ति थे महावीर : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव रखने वाले अभयमूर्ति थे महावीर : आचार्यश्री महाश्रमण

विलेपारले, 7 दिसंबर, 2023
परम पूज्यप्रवर आज प्रातः अंधेरी से विहार कर मुंबई के उपनगर विलेपारले पधारे। महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आज मिगसर कृष्णा दशमी भगवान महावीर का दीक्षा कल्याणक दिवस है। वर्द्धमान ने गृहस्थ का त्याग कर साधुता की भूमिका पर आरोहण किया था। हमारी दुनिया में महापुरुष भी यदा-कदा होते हैं। गीता में कहा गया है कि जब धर्म की ग्लानि होती है, अधर्म का उत्थान हो जाता है, जब-जब मैं अवतार लेता हूँ। यह कृष्ण की भाषा है। साधुओं, सज्जनों व धर्म की रक्षा के लिए मैं युग-युग में अवतार लेता हूँ। यह बात अलग है कि अवतार होता है या नहीं।
भगवान महावीर इस दुनिया में मनुष्य के रूप में आए। वे भी अवतरण कर देवलोक से आए थे। उनमें कुछ विशिष्टता थी। माँ के गर्भ में थे तभी गहरा चिंतन किया था। उनका माता-पिता के प्रति भक्ति-अनुराग था। माता-पिता की मृत्यु के बाद ही दीक्षा ली थी। सर्व सावद्य प्रवृत्ति का त्याग कर दिया था। वो आत्मा धन्य हो जाती है, जो साधुत्व-संन्यास को ग्रहण कर लेती है। लगभग साढ़े बारह वर्षों तक उन्होंने विशेष साधना की। वे अभय के मूर्ति-पुरुष थे। साधक तो सबके साथ मैत्री रखने वाला होता है। उसका दूसरा जीवन क्या बिगाड़ सकता है। चाहे चंडकौशिक हो, शूलपाणि यक्ष हो या संगम देव।
लगभग तीस वर्ष तक वे तीर्थंकर काल में रहे और जन-जन का कल्याण किया। उनका आयुष्य ज्यादा दीर्घ नहीं था। आयुष्य से ज्यादा महत्त्व उच्च स्तर के जीवन जीने का है। वे परम जीवी, अध्यात्म जीवी थे। भगवान महावीर इस अवसर्पिणी काल के अंतिम चैबीसवें तीर्थंकर थे। उनके संदेश हमें आगमों में प्राप्त है। जैन आगमों में अहिंसा, संयम और तप की बात आई है। भगवान महावीर अहिंसामूर्ति, संयममूर्ति और तपोमहामूर्ति के रूप में स्थित थे। उन्होंने जनोपकार का कार्य भी किया था।
गौतम स्वामी के कितने प्रश्नों के उत्तर दिए थे। लगभग 72 वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर उनका निर्वाण हुआ था। यह वर्ष उनके निर्वाण का 2550वाँ वर्ष है। उनमें जो साधना थी वो साधना हमारे में भी जितने अंशों में आ सके आए। उनके ज्ञान रूपी समुद्र की बूँदें भी कुछ हमारे भीतर आएँ। आज विलेपारले आए हैं। बहुश्रुत परिषद के संयोजक मुनि महेंद्र कुमार जी की यह महाप्रयाण भूमि है। उनके सहवर्ती संत यहाँ हैं। ये भी खूब विकास करते रहें। मुनि अभिजीत कुमार जी, मुनि जागृत कुमार जी, मुनि सिद्धकुमार जी ने मुनि महेंद्र कुमार जी के संस्मरण बताए।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आज के दिन पूज्यप्रवर ने बीदासर में तेरापंथ के नए इतिहास का सृजन किया था। 43 दीक्षाएँ प्रदान कराई थीं। वह दीक्षा महोत्सव विलक्षण था। हम मानसिक रूप से अहिंसक बन भगवान महावीर के सिद्धांतों को जीवन में उतारने का प्रयास करें। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्थानीय विधायक पराग अलवणी, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, स्वागताध्यक्ष शांतिलाल कोठारी, तेरापंथ महिला मंडल, तेयुप अध्यक्ष अरविंद कोठारी, मेघराज धाकड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।