दृढ़ विश्वास द्वारा हर कार्य को किया जा सकता है फतेह
चंडीगढ़।
मनुष्य को सदैव परीक्षा करके अपनी बुराइयों को हटाकर, श्रेष्ठ सद्गुणों को अपने भीतर धारण करना चाहिए। व्यक्तियों मे भिन्न-भिन्न प्रकार के दुर्गुण पाए जाते हैं और उसी प्रकार समाज में दुर्जन व्यक्ति भी होते हैं। इन दोनों को दूर रखना चाहिए। अपने मन के विकारों को रोकना और दूर करना हमारा व्यक्तिगत कार्य है। अगर हम ऐसा न करेंगे तो इससे हमको ही हानि उठानी पड़ेगी, क्योंकि विकार युक्त भावनाओं और कार्यों से कभी स्थायी लाभ अथवा कल्याण की प्राप्ति नहीं हो सकती। इस प्रकार समाज में पाए जाने वाले दुर्जन व्यक्तियों का नियंत्रण सब लोगों को मिलकर सामुदायिक रूप से करना चाहिए। यह विचार मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने व्यक्त किए। मुनिश्री ने कहा कि जब हम किसी वस्तु, पदार्थ को पाने के लिए चेष्टा करते हैं तभी हम तनाव की स्थिति अपने भीतर उत्पन्न कर लेते हैं। तनाव और मुक्ति का परस्पर जुड़ाव है केवल इतना करना आवश्यक है कि तनाव को यदि हम काबू कर लें तो हम सहज भाव से हर समस्या को हल कर सकते हैं।