बढ़ती रहे धर्म भावना
सिलीगुड़ी।
सिलीगुड़ीवासियों की ऐतिहासिक भेंट अर्पण करने पर मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा कि सिलीगुड़ी का चातुर्मास ऐतिहासिक रहा। श्रावक समाज ने गुरुदृष्टि की आराधना करते हुए चातुर्मासिक साधना, आराधना में जागरूक रहकर ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप के द्वारा कर्म निर्जरा की। इस बार श्रावक समाज ने विशेष रूप से तपस्या की है। चातुर्मास प्रारंभ से लेकर अब तक तपाराधना गतिमान है। गृहस्थ जीवन का पालन करते हुए सम्यक् रूप में धार्मिकता भी रहनी चाहिए।
हमारा व्यवहार, आचरण, संस्कार, परिवेश सभी में आध्यात्मिकता का समावेश हो जाए तो व्यक्ति का जीवन आदर्शमय बन जाता है। स्वाध्याय एवं तप अपने आपमें भीतर से जागृत कर देता है। आज व्यक्ति अशांति का जीवन जी रहा है। शांति, सुकून पदार्थ में नहीं संतोष एवं संयम में है। सिलीगुड़ी वासियों में धर्म की भावना बढ़ती रहे। तप के क्षेत्र के साथ-साथ ज्ञान का भी विकास होता रहे। आध्यात्मिक विकास के बिना भौतिक विकास से साधन मिल सकते हैं, लेकिन सुख और शांति साधना से ही मिलती है।
मुनि कुमुद कुमार जी ने कहा कि जैन साधु-साध्वी आत्मकल्याण के साथ-साथ परकल्याण का मनोभाव रखते हुए विचरण करते हैं। एक स्थान पर चातुर्मास कर जनमानस को आध्यात्मिक जीवन की प्रेरणा प्रदान करते हैं। चातुर्मास का समय विशेष धर्मोपासना का होता है। अहिंसा, संयम, त्याग-प्रत्याख्यान के द्वारा कर्म निर्जरा की जाती है। त्याग-संयम के प्रति चेतना जागृत रहे। गुरु इंगित की आराधना करते हुए धर्मसंघ की प्रभावना में सिलीगुड़ी श्रावक समाज सदैव आगे रहे। मेरे संयमजीवन का यह पहला अवसर है जब चातुर्मास विदाई में 108 तेलों की भेंट श्रावक समाज ने अर्पित की।
सभा मंत्री मदन संचेती ने बताया कि सिलीगुड़ी के इतिहास में पहली बार एवं तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में संभवतः पहली बार चातुर्मासिक विदाई में 108 तेलों की भेंट मिली है। श्रावक समाज में तप के प्रति विशेष भावना बनी है। सिलीगुड़ी तेरापंथ सभा सभी तपस्वियों का अभिनंदन करती है।