साध्वी मैत्रीप्रभा जी का धर्मचक्र तप संपन्न
शाहदरा, दिल्ली।
साध्वी अणिमाश्री जी के सान्निध्य में साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने धर्मचक्र तप के अंतिम चरण का प्रत्याख्यान किया। संपूर्ण श्रावक समाज ने साध्वीश्री जी के तप का अभिवादन करते हुए तप की अनुमोदना की। साध्वी अणिमाश्री जी ने कहा कि तपस्या वह मशाल है, जो आत्म ज्योति को प्रज्ज्वलित कर ब्रह्मज्योति से साक्षात्कार करवा सकती है। तपस्या वह महापुष्प है, जो पूरे वातावरण को सुवासित कर देता है। तपस्या वह शंखनाद है, जो भीतर की चेतना को जागृत करता है। तपस्या वह नौका है, जो भवसागर से पार पहुँचा सकती है। धन्य हैं, वे तपस्वी जो तप रूपी आभूषण से अपने जीवन का शंृगार करते हैं। धन्य हैं, वे तपस्वी जो अपने तप से जिन शासन की नींवों को मजबूती प्रदान करते हैं। धन्य हैं वे तपस्वी जो अपने तप से संघ के गौरव को शतगुणित करते हैं। तपस्वी साधु-साध्वियों की शृंखला में एक नाम जुड़ा हैµसाध्वी मैत्रीप्रभाजी का।
साध्वी मैत्रीप्रभा जी हमारे धर्मसंघ की वो साध्वी हैं, जिन्होंने लघुसर्वतोभद्र तप कर संघ की ख्यात में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित किया। आचार्य महाश्रमणजी के युग में साध्वियों में लघुसर्वतोभद्र तप करने वाली यह पहली साध्वी हैं। इन्होंने वर्षीतप, सिद्धितप, कंठी तप, प्रतर तप एवं धर्मचक्र तप कर अपने जीवन का तप से शंृगार किया है। दस तक की लड़ी, पखवाड़ा एवं एक साथ एक सौ आठ एकासन भी किए हैं। मैं यही मंगलकामना करती हूँ तप के क्षेत्र में वर्धमान रहती हुई, ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र को तेजस्वी बनाओ।
धर्मचक्र तप साधिका साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने कहा कि मैं अत्यधिक सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे जिन शासन में भैक्षव शासन मिला है। आचार्य महाप्रज्ञ जी के करकमलों से मुझे संयम रत्न मिला एवं आचार्यश्री महाश्रमण जी के आशीर्वाद एवं ऊर्जा से तप के क्षेत्र में गतिमान हुई हूँ। मेरी तप की शक्ति को जागृत करने वाली मेरी अग्रगण्य श्रद्धेया साध्वी अणिमाश्री जी हैं। पहले मेरी ज्ञान चेतना को प्रकट कर मुझे डबल एम0ए0 करवाया, उसके बाद तप में नियोजित किया। आपकी कृपा से ही मैं तपस्या कर पाई हूँ। साध्वी कर्णिकाश्री जी, साध्वी सुधाप्रभा जी, साध्वी समत्वयशा जी का भी आत्मीय सहयोग मुझे मिला। सबके प्रति आभार व्यक्त करती हूँ। उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी स्वामी ने वात्सल्यामृत का पान करवाकर मुझे अभिभूत कर दिया। मुनि नमि कुमार जी, मुनि अमन कुमार जी ने मुझे दर्शन दिए सभी के प्रति कृतज्ञता।
साध्वी कर्णिकाश्री जी ने कहा कि साध्वी मैत्रीप्रभाजी संकल्प की धनी हैं। मनोबल व आत्मबल भी गजब का है। साध्वी डाॅ0 सुधाप्रभा जी ने कहा कि साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने विभिन्न प्रकार के तप कर कीर्तिमान बनाए हैं। छोटी वय में तपस्या कर अद्भुत इतिहास रचाया है। साध्वी समत्वयशा जी ने विभिन्न राग-रागिनियों में तप की अनुमोदना की, जिसे सुनकर पूरी परिषद भावविभोर हो गई। साध्वीवृंद ने सामूहिक गीत का सुमधुर संगान किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी का संदेश प्राप्त हुआ। जिसका वाचन डाॅ0 साध्वी सुधाप्रभा जी ने किया।
इस अवसर पर उग्रविहारी, तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी का पदार्पण नई खुशिया लेकर आया। मुनिश्री के आगमन ने पूरे वातावरण को ऊर्जामय बना दिया। मुनिश्री ने तपस्विनी साध्वी मैत्रीप्रभा जी की तप अनुमोदना कविता द्वारा की। मुनिप्रवर ने साध्वी अणिमाश्री जी के प्रति प्रमोद भाव व्यक्त करते हुए कहा कि आप चातुर्मास के बाद एम0पी0 की ओर प्रस्थान करेंगी। आप पहली बार एम0पी0 पधार रही हैं, आपके लिए नई भोर उदित होगी। यह चातुर्मास प्रथम पंक्ति में होगा, ऐसी मैं मंगलकामना करता हूँ।
साध्वी अणिमाश्री जी ने अहोभाव प्रकट करते हुए कहा कि आपश्री जो वात्सल्य की गंगा प्रवाहित करते हैं, उसमें अवगाहन कर हम बाग-बाग हो जाते हैं। आपकी प्रमोद भावना अनुकरणीय है। आपश्री ने जो मेरे लिए मंगलभाव व्यक्त किए हैं, वो मेरी निधि है। हम सब गुरु आज्ञा में रहते हुए संघ की प्रभावना
करते रहें।