मोक्ष मार्ग में पाथेय के समान है सत्य वचन : आचार्यश्री महाश्रमण
जन-जन के उद्धारक परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी आज गरूड़माची रिसोर्ट पधारे। मंगल देशना प्रदान कराते हुए महातपस्वी ने फरमाया कि हमारी दुनिया में पाप भी चलता है और धर्म भी चलता है। आदमी व अन्य प्राणी कभी पाप में प्रवृत हो जाते हैं तो कभी वे धर्म की आराधना करने वाले भी बन जाते हैं। पाप के अठारह प्रकार जैन तत्त्व विद्या में बताये गये हैं। ये अठारह- पाप की प्रवृत्तियां हैं जिनसे पाप कर्म का बन्ध होता है। तीन चीजें है- पापस्थान, पाप की प्रवृत्ति और पाप का बन्ध। अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़ी ये चीजें हैं। हिंसा करना, झूठ बोलना आदि पाप हैं। झूठ बोलने वाले का लोग विश्वास नहीं करते। सत्य विश्वास का स्थान है। विपत्ति का नाश करने वाला भी सत्य वचन होता है। देवों के द्वारा भी सत्य वचन की आराधना की गयी है। मोक्ष के मार्ग में सत्य वचन पाथेय के समान है। सत्य कल्याण करने वाला, समृद्धि को पैदा करने वाला, सज्जनता की संजीवनी है।
चोरी नहीं करना और झूठ नहीं बोलना ये ईमानदारी के दो आयाम हैं। हमें ईमानदारी के लिए ये दो प्रयास करने चाहिये। मन ललचाता है तो आदमी दूसरे की चीज चुरा सकता है। अनेक रूपों में चोरी हो सकती है। गृहस्थों का यह मनोभाव रहे कि अदत्तादान का त्याग हो। यह दुर्लभ मनुष्य जन्म हमें मिला है, इसमें ज्यादा से ज्यादा धर्म का कार्य करने का प्रयास करें, पाप बंध से बचने का प्रयास करें। साधुओं के वचन से आदमी पापों को छोड़ने का निर्णय कर धर्म के रास्ते पर आगे बढ़ने लग सकता है। संत तो स्वयं त्यागी होते हैं, उनकी वाणी के प्रभाव से आदमी की जीवन शैली में परिवर्तन आ सकता है, वह सन्मार्ग पर चलने का प्रयास कर सकता है।