समस्याओं की अवांछनीय वर्षा से सुरक्षा कर सकता है अणुव्रत का छत्र : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

समस्याओं की अवांछनीय वर्षा से सुरक्षा कर सकता है अणुव्रत का छत्र : आचार्यश्री महाश्रमण

फाल्गुन शुक्ला द्वितीया, वि. सं. २००५ के दिन आचार्य श्री तुलसी ने सरदारशहर में अणुव्रत आन्दोलन का आगाज किया था। आज अणुव्रत आंदोलन अपने ७५ वर्ष पूर्ण कर ७६वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। अणुव्रत अमृत महोत्सव के त्रिदिवसीय सम्पूर्ति महोत्सव के तृतीय एवं मुख्य दिवस का कार्यक्रम अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि में पूज्यप्रवर के मुखारविंद से कोंकण क्षेत्र के लोणेर ग्राम में मंगल मंत्रोच्चार एवं अणुव्रत गीत के संगान के साथ प्रारंभ हुआ।
परम पावन आचार्य प्रवर ने अपने प्रेरणा पाथेय में फरमाया कि प्राणों का अतिपात नहीं करना, हिंसा नहीं करना, यह अहिंसा धर्म है। साधु का अहिंसा धर्म सर्वप्राणातिपात विरमण महाव्रत के रूप में होता है। गृहस्थ के लिए यह स्थूल प्राणातिपात विरमण के रूप में होता है। साधु का धर्म महाव्रत का धर्म है, गृहस्थ उतना न कर पाए, उसके लिए अणुव्रत का मार्ग होता है।
अणुव्रत का अस्तित्व प्राचीन काल से है, भगवान महावीर और जैन शासन से जुड़ा हुआ है। आचार्य भिक्षु ने एक चिंतन, दर्शन दिया था कि एक मिथ्यात्वी व्यक्ति है, अन्य धर्मावलंबी है, वह अच्छा काम करे, त्याग- तपस्या करे तो वह भी धर्म है। अभवी भी कोई त्याग- तपस्या करता है तो उसे भी धर्म हो सकता है। केवल जैन धर्म के अनुयायी ही नहीं, किसी भी धर्म के लोग, कोई त्याग-तपस्या करें उन्हें धर्म का फल मिल सकता है। यह आचार्य भिक्षु का 'मिथ्यात्वी की करणी' का यह एक सिद्धांत रहा है, कि वो भी एक आराधिका है। गुरुदेव श्री तुलसी ने अणुव्रत को एक व्यापक रूप दिया कि कोई भी अणुव्रत को स्वीकार कर सकता है, संभव है कि उसमें आचार्य भिक्षु का 'मिथ्यात्वी की करणी' का सिद्धांत आधार के रूप में रहा होगा।
गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत का शुभारंभ फाल्गुन शुक्ला दूज, परम पूज्य कालूगणी के जन्म दिवस के दिन सरदारशहर में किया था। परम पूज्य कालूगणी, अणुव्रत आंदोलन और पारमार्थिक शिक्षण संस्था का भी जन्म दिवस आज ही है। आदर्श साहित्य संघ था, उसका भी स्थापना दिवस आज का दिन है। आज दूज भी है, तीज भी है। कहा गया है कि 'अणपूछा मुहूरत भला, का तेरस का तीज।'
आचार्य श्री तुलसी ने युवा अवस्था में अणुव्रत का शुभारंभ किया। अणुव्रत के प्रचार-प्रसार में चारित्रात्माओं, समणियों, गृहस्थ कार्यकर्ताओं आदि अनेकों का योगदान रहा है, श्रम नियोजन हुआ है। अणुव्रत एक ऐसा छत्र है जो समस्याओं की अवांछनीय वर्षा से आदमी की सुरक्षा कर सकता है। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी अनेक गतिविधियों वाली संस्था है। अणुव्रत न्यास भी अणुव्रत की गतिविधियों में योगदान देता रहे। अणुव्रत का कार्य बढ़ता रहे। अणुव्रत अमृत महोत्सव संपन्नता के निकट है। ७५वें वर्ष की संपन्नता के बाद आगे शताब्दी वर्ष की भी बात है। सन् १९९९ में पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के सान्निध्य में अध्यात्म साधना केंद्र दिल्ली के सामने के स्थान में अणुव्रत के ५०वर्षों की संपन्नता के अवसर पर मैंने भी शताब्दी समारोह की कल्पना के संदर्भ में भाषण दिया था। उसमें मैंने कुछ विचार रखे थे, उनको भी शताब्दी के संदर्भ में सुना जा सकता है।
आचार्य प्रवर ने खड़े होकर ठीक ११:०१ बजे एक वर्ष पूर्व घोषित अणुव्रत अमृत महोत्सव वर्ष एवं अणुव्रत यात्रा दोनों की संपन्नता की घोषणा की। परम पावन आचार्य प्रवर के पावन पाथेय से पूर्व साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि जबसे परम पूज्य आचार्यवर ने अणुव्रत वर्ष एवं अणुव्रत यात्रा की घोषणा की है, तब से ऐसा लगता है कि अणुव्रत की गूंज हो रही है। गूंज तब होती है जब कोई प्रासंगिक होता है।

अणुव्रत की उपयोगिता पहले भी थी, वर्तमान में भी है और भविष्य में भी रहेगी। जैसे परम पूज्य आचार्य प्रवर के सान्निध्य में अणुव्रत अमृत महोत्सव मनाया गया वैसे ही आचार्य प्रवर के सान्निध्य में शताब्दी महोत्सव भी मनाया जाए। मुख्यमुनि महावीरकुमारजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि गुरुदेव तुलसी ने अपनी दूरदर्शिता से एक ऐसा दर्शन दिया जिसके माध्यम से व्यक्ति के चरित्र का उत्थान हो सकता है, नैतिकता की प्रतिष्ठापना हो सकती है और अहिंसक विश्व का निर्माण किया जा सकता है। गुरुदेव श्री तुलसी ने अणुव्रत को जन- जन तक पहुंचाया। सैंकड़ों कार्यकर्ताओं और साधु साध्वियों ने अपना योगदान दिया।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा प्रवर्तित जीवन विज्ञान और प्रेक्षा ध्यान से अणुव्रत और सबल बन गया। आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपनी दूरदर्शिता से अणुव्रत की अलग-अलग संस्थाओं का एकीकरण कर सारे आयामों को एक ही संस्था के अंतर्गत लाकर नया प्राण भर दिया और ७५वें वर्ष में अणुव्रत यात्रा घोषित कर अणुव्रत के महत्व को और वृद्धिंगत कर दिया। साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने अपने वक्तव्य में कहा- जैन आगमों में तीन प्रकार के व्यक्तित्वों का उल्लेख मिलता है: आत्मानुकम्पी, परानुकंपी, उभयानुकम्पी।
गुरुदेव तुलसी उभयानुकम्पी व्यक्तित्व के धारक थे। उभयानुकम्पी व्यक्तित्व अपने निर्माण के साथ-साथ दूसरों के निर्माण, उत्थान, विकास का चिंतन करता है। आचार्य तुलसी ने अपनी अमाप्य शक्ति से अनेक व्यक्तित्वों का निर्माण तो किया ही, अनेकों अवदान भी दिए जिनके माध्यम से मानव जाित का उत्थान हो सके। उनमें से एक है- अणुव्रत। व्रत हमारे जीवन का सुरक्षा कवच है। जहां व्रत नहीं होते वहां बेईमानी, भ्रष्टाचार, अनाचार आदि दुष्प्रवृत्तियां बढ़ जाती हैं और समाज रुग्ण, अस्वस्थ और कमजोर बन जाता है। अणुव्रत की आचार संहिता, मानव में मानवीयता एवं नैतिकता के गुणों को विकसित करती है। अणुविभा परामर्शक, न्यायाधीश गौतम चोरड़िया, अणुविभा के प्रबंध न्यासी तेजकरण सुराणा, अणुविभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश नाहर ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन अणुव्रत अमृत महोत्सव के संयोजक संजय जैन ने किया।