दुःख मुक्ति के लिए अपने आप का निग्रह करें : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी पुणे की ओर अग्रसर होते हुए निजामपुर पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए परम पावन ने फरमाया कि जीवन में कई बार दुःख भी आ जाते हैें।बीमारी, मृत्यु, जन्म, बुढ़ापा आदि दुःख के प्रसंग हो सकते हैं। आदमी दुःखों से छुटकारा पाना चाहता है, कि दुःख मुक्त जीवन हो, मैं सुखी बनूं। भारतीय साहित्य में मोक्ष की बात आती है वह तो परम सुख की स्थिति है। कई विशेष महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने विशेष साधना कर परम अवस्था-मोक्ष को प्राप्त कर लिया है।
हम जीवन में क्या करें और क्या न करें जिससे इस जीवन में भी अच्छे रह सकें और आगे भी अच्छा रह सके। एक सिद्धान्त है, पुनर्जन्मवाद का। इस जीवन से पहले भी हमारा जीवन था और जब तक मोक्ष नहीं होगा तब तक जन्म-मरण होता रहेगा। पूर्वजन्म व पुनर्जन्म का सिद्धान्त आध्यात्मिक शास्त्रों में मिलता है। आत्मा एक शाश्वत तत्व है, शरीर तो विनाश धर्मा-अस्थायी है। बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा जो भी दुनिया में जन्म लेता है, सबको अवसान को प्राप्त करना होता है। जब तक जीवन है, उसे अच्छे ढंग से अच्छा जीवन जीयें। यहां अच्छा आचरण करेंगे तो आगे भी अच्छे फल मिल सकते हैं। कहा गया है कि दुःखों से मुक्ति के लिए अपने आपका निग्रह करो, संयम करो, आत्मानुशासन रखो।
आज इतने शिक्षा संस्थान हैं, यहां जीवन विज्ञान से बच्चों में आत्मानुशासन व अच्छे संस्कार आ सकते हैं। बच्चों को बुरी बात कभी नहीं करनी चाहिये, किसी को धोखा नहीं देना चाहिये। किसी भी जीव को सताये नहीं। बच्चों के जीवन में भी अहिंसा के संस्कार आये। ज्ञान के साथ आचरण भी अच्छा हो। बच्चे संस्कारित होंगे तो समाज और देश भी अच्छा होगा। पूज्यप्रवर के स्वागत में निजामपुर विभाग शिक्षा प्रसारक मंडल के अध्यक्ष श्री दत्तूशेठ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।