जीता जीवन मैदान है
समता से सह विपुल वेदना, किया स्वर्ग प्रस्थान है।
सतिवर सोमलता जी ने, जीता जीवन मैदान है।।
लघुवय में महासतिवर लाडांजी से, शुभ संयम पाया,
शिक्षा, सेवा और साधना, का तरूवर है लहराया,
अमीदृष्टि पा आचार्यों की, किया स्व पर कल्याण है।।
कार्यकुशल, व्याख्यानकुशल, व्यवहारकुशल थी शासनश्री,
तन कोमल पर दृढ़ संकल्पी, स्पष्ट सहज थी शासनश्री,
उग्रविहारी, तपोमूर्ति की, भगिनी बनी महान् है।।
बेबस हुए चिकित्सक तो, खुद बनी चिकित्सक आत्मा से
पा पाथेय गुरुवर का पावन, राह चुनी शुभ आत्मा से,
सहयोगी सतियां सुखकारी, रखा निरंतर ध्यान है।।
महाशिवरात्रि के अवसर पर, अनशन अंतिम स्वीकारा,
अनुज कमल मुनिवर से पचखा, चौविहार यह संथारा,
महानगरी मुंबई में गूंजा, सोमलता अभिधान है।।
वापी तेरापंथ भवन में, गुणानुवाद हम करते हैं।
नंदनवन, पारस बडला के दृश्य सहज ही उभरते हैं।
भूली बिसरी यादों के तारों का अब संधान है।।
लय: कलयुग बैठा