आत्मशौर्य का नगीना है-संथारा
अनासक्ति का गुलशन है - संथारा।
आत्मबल का बीमा है - संथारा ।
आत्मशौर्य का नगीना है- संथारा।
गंगाशहर की लाडली साध्वी सोमलताजी ने गुरुदेव तुलसी की आज्ञा से साध्वीप्रमुखा लाडांजी के कर कमलों से संयम रत्न पाया। सहज सरल व्यवहार से साधना को चमकाया। सरस प्रवचन शैली से कई श्रावक-श्राविकाओं को सुलभ बोधि बनाया।
बिहार, बंगाल, आसाम ऐसे कई दूरस्थ क्षेत्रों में लंबी-लंबी यात्रा करके संघ प्रभावना में चार चांद लगाये।
गुरुदेव ने असीम कृपा करके मुनिश्री कमल कुमारजी स्वामी को, आपकी सेवा करवाने भेजा। यह भी एक दुर्लभ योग मिला।
साध्वीश्री शकुंतलाश्रीजी आपके तन का कपड़ा बनकर हमेंशा साथ रही। खूब सेवा की। सहयोगी साध्वियों की सेवा भी सराहनीय रही। लंबे काल से इतने अस्वस्थ होते हुए भी उनकी समता और मनोबल लाजवाब था। अंत में अनशन करके जीवन को धन्य बनाया। मुंबई वासियों ने भी जागरूकता से सेवा करके संघ का गौरव बढ़ाया। साध्वीश्री की आत्मा शीघ्रताशीघ्र मोक्ष का वरण करें।