संथारे में किया प्रयाण

संथारे में किया प्रयाण

संथारे में किया प्रयाण।
साध्वी सोमलता के सारे, सफल हुए अरमान।।
गणपति तुलसी कर कमलों से, संयम जीवन पाया,
आत्मभाव से भावित बनना, यह संकल्प सजाया।
उसी भाव में सहज सदा ही, बनी रही गलतान।।
ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय, साधना, जिनका नित प्रति क्रम था।
शासन सेवा, जनप्रतिबोधन, अविचल मन का श्रम था।
कमल मुनि की ज्येष्ठ भगिनी, होने की पाई शान।।
ऋजुता, मृदुता, सहज सौभ्यता, जन-जन के मन भाई ।
कर्म खपाए और खपाकर, पाओ आत्म ऊंचाई।
मोहजीत मुनि कहता आत्मा, का हो नित उत्थान।।
लय-धर्म की लौ