केसर सुता चरणों में
केसर सुता चरणों में रहते थे मगन,
रतन सुता चरणों में रहते थे मगन।
समता मय था जीवन बन गई धन-धन।।
धरती सम सहनशीलता, अुदभुत देखी वीरता,
हर क्षण निज में लीनता, ओ मेरे सतिवरम्,
आ जाओं एक बार गा रहे भू-गगन।।
संथारे में गमन, नश्वर छोड़ा ये तन,
विषय विकार शमन, सफल भावना हुई,
मुनिवरम् के बढ़े कदम, तैयार थी सतिवरम्,
पक्का कर पचखाया, मुनिवर ने था मन।।
गुरूवर त्रय कृपा सवाई, संयम की धुनी रमाई,
क्षमता की अलख जगाई, वाह -वाह रे सतिवरम्,
गजब थी सादगी, जिनवरम् सम बानगी,
निर्धूम ज्योत जगी, रूं-रूं में बस गए हो, करेंगे स्मरण।।
संथारा हुआ सफल, वो था सचमुच विरल,
भ्राता है मुनि कमल, तुम दवा रोगों की,
तुम अरि भोगों की, पराक्रमी गण की,
स्मृति सभा में चार तीर्थ अश्रुदार है नयन।।
चारों ही सतियों ने, सेवा का लाभ उठाया,
सौ-सौ तन-मन से, देते साधुवाद हम,
एकाकार, ना था भार, खाने-पीने से ना था प्यार,
हनुमान बनकर झोंका था निज जीवन।।
लय: गुरुदेव छोड़ हमको