तुमने इतिहास रचाया

तुमने इतिहास रचाया

जय-जय-जय सति सोमलताजी, जीवन धन्य बनाया।
तुमने इतिहास रचाया।
गंगाणै की पुण्यधरा पर, संयम को स्वीकारा।
लाडसती की बनी लाडली, जीवन था मनहारा।
साध्वी प्रमुखा लाडसती से, नूतन जीवन पाया।
समता, क्षमता, कार्यकुशलता सहजयोग मनभाता।
निर्मलतम गंगा सा जीवन, संयम तप सरसाता।
श्रद्धा-भक्ति, विवेक प्रसून से, मन उपवन महकाया।
पौरूष की तुम अकथ कहानी, कण-कण को जागृत करती।
सृजन-सुधा के अमृत-घट से, रीती गागर भरती।
देश-विदेश की कर यात्रा, गण-गौरव खूब बढ़ाया।
उग्रविहारी तपोमूर्ति, मुनिवर हैं भ्रात तुम्हारे।
धर्मसंघ के इकलौते ये फड़दी संत हमारे।
दिल्ली से चलकर वीरा, सेवा करवाने आया।
शकुन्तलाजी संचितयशा ने, की सेवा सुखदाई।
साध्वी जाग्रत-रक्षित ने पाई सन्निधि वरदाई।
संथारा करवाकर तुमने, पूरा कर्ज चुकाया।
हुई असाता तन में तेरे, पर मन में समता भारी।
जागृत जीवन जीया तुमने, जाएं हम बलिहारी।
अंत समय में भ्रात मुनि ने, संथारा पचखाया।।
दिव्यलोक से गण की सेवा, करते रहना सतिवर।
गण का कर्ज चुकाना अब तुम, गण ही है श्रेयस्कर।
महाश्रमण प्रभुवर का हमने, पाया सुखकर साया।।
लय: जहां डाल डाल