कितना बदल गया इंसान
गुरु तुलसी की कृपा से संयम जीवन पाया,
चिन्तामणी हाथ आया।
महातपस्वी महाश्रमण प्रभु का सिर पर साया।।
गंगाणै की पुण्य धरा पर, सूरज छोटा के घर प्रांगण,
भाग्यवती लक्ष्मी घर आई, हर्षित पुलकित बैद आंगण।
मात पिता से सद् संस्कारों, का सिंचन पाया।।
आश जगी अभिलाष जगी थी तप संयम से प्रीत लगी थी,
गुरु चरणो में मोद मनाऊ दिल मे गहरी चाह जगी थी।
प्रभु की स्नेहिल नजरें पाकर, मन ये हरसाया।।
मघवागणी की जन्म धरा है, भैक्षव शासन हरा भरा है
महासती लाडां चरणों मे, संयम पाया खरा-खरा है।
जाग उठी पुण्याई, भिक्षु शासन मन भाया।।
महा वेदना तन में आई, मुख पर कभी नही दिखलाई,
संथारा कर अन्त समय में, काया कुन्दन सी चमकाई।
भ्रात कमल ने भगिनी को, संथारा पचखाया।।
गुरु सेवा का शुभ अवसर भी, भाग्योदय से घर में पाया,
परम समाधि देख तुम्हारी, जन-जन के मन हर्ष समाया।
संथारे की महकी सौरभ, जीवन सरसाया।।
महाश्रमण का संघ मिला है, जीवन का यह बाग खिला है,
गुरु कृपा से सेवाभावी, सतियों का शुभ योग मिला है।
सोमलता गुण गौरव मिलकर, सतियों ने गाया।।