िवशेषताएं स्मृति पटल पर उभर रही हैं
महाशिवरात्रि के मंगल प्रभात में साध्वीश्री सोमलताजी ने मंगलमय अनशनपूर्वक महाप्रयाण कर दिया। वे जैन शासन के उदितोदित धर्मशासन तेरांपथ की अंतरंग सदस्या बनी। करीब ५६ वर्षों तक संयम की साधना की। अपनी अर्हताओं से स्वयं को आलोकित किया और शासन की सुषमा बढ़ाई। जटिल बीमारी से वीर योद्धा की भांति जूझते हुए समता की धार बहाती रही। गुरुकृपा एवं पुण्याई से उन्होंने अपनी हर इच्छा पूर्ण की।
उनके साथ गुरुकुलवास एवं बहिर्विहार में यदाकदा साथ रहने का प्रसंग आया। उनकी विशेषताएं मधुरभाषिता, व्यवहार कुशलता, सहिष्णुता आदि स्मृति पटल पर उभर रही हैं। पूज्यवर के नंदनवन प्रवास में जिस निकटता के साथ हमारा समय व्यतीत हुआ, वह चिरस्मरणीय रहेगा। साध्वी शकुंतलाजी, साध्वी संचितयशाजी, साध्वी जागृतप्रभाजी व साध्वी रक्षितयशाजी ने जिस मनोयोग के साथ लंबे समय तक उनकी सेवा की है, वह काबिले तारीफ है। दिवंगत आत्मा के प्रति शत-शत श्रद्धांजलि।