एक विदुषी, चिन्तनशील, गम्भीर साध्वी की कमी हो गई
'शासनश्री' साध्वी सोमलताजी हमारे धर्मसंघ की विदुषी, चिन्तनशील गम्भीर, गुरुभक्ति में भीगी साध्वी थी। आप भाग्यशालिनी थी कि आचार्य तुलसी के शासनकाल में साध्वी प्रमुखा लाडांजी के कर कमलों से आपकी दीक्षा हुई। साध्वी प्रमुखा लाडांजी की सन्निधि में रहकर आपने अपने जीवन को सदा सरसब्ज बनाया। आपश्री कुशल गायिका, सफल गीतकार, प्रखर प्रवचनकार, कुशल लेखिका थी। आपने देश-विदेशों की यात्रा कर धर्मसंघ की अच्छी प्रभावना की। आप स्वयं तो एक संस्कारी गुण सम्पन्न साध्वी थी, आपने अपनी सहवर्ती साध्वियों को भी अच्छे संस्कार दिये। साध्वी शकुन्तलाजी, संचितयशाजी, जागृतयशाजी, रक्षितयशाजी ने साध्वीश्री जी की खूब सेवा की, सदा अनुकूल रही।
हमें साध्वी सोमलताजी पर गौरव है, जब कभी गीत बनाने का काम पड़ता आप तत्काल बनाकर देती। इस बार नन्दनवन में जब मैंने अठाई की, उन्होंने मेरा खूब लाड रखा, कई गीत बनाकर मुझे सुनाए। ऐसी मृदभाषी साध्वीश्री के जाने से हमारे संघ में एक अच्छी साध्वी की कमी हुई है। आप परम सौभाग्यशालिनी थी कि आप को इस बार चातुर्मास में गुरु सन्निधि प्राप्त हुई एवं बाद में मुनिश्री के दर्शन भी हो गये। साध्वी सोमलताजी की आत्मा शीघ्र सिद्धत्व अवस्था को प्राप्त करे यही मंगल कामना।