योग साधना से प्राप्त हो सकता है परम सुख का स्थान : आचार्यश्री महाश्रमण
जनोद्धारक आचार्य श्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ दो दिवसीय प्रवास हेतु बीड़ पधारे। आगम वाणी का रसास्वाद कराते हुए परमपुरुष ने फरमाया कि दो शब्द हैं- भोग और योग। तीसरा मिलता-जुलता शब्द है- रोग। आदमी शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श इन इन्द्रिय विषयों का उपभोग करता है। इन्द्रिय विषयों का आसक्ति के साथ भोग जन्म-मरण के चक्र को बढ़ाने वाला हो सकता है। भोगी भ्रमण करता है, अभोगी भ्रमण से विप्रमुक्त हो जाता है। रोग शारीरिक और मानसिक भी हो सकता है, आसक्ति से भी रोग बढ़ सकते हैं। रोग को उत्पन्न करने में भोग अपनी निमित्तता दर्ज करा सकता है। यदि व्यक्ति धार्मिक चेतना से खाने का संयम रखता है तो धर्म लाभ के साथ शरीर स्वस्थ रखने में भी निमित्तभूत बन सकता है। आदमी योग की, धर्म की साधना में आगे बढ़ने का प्रयास करे। आसन भी योग का एक अंग है। एक जगह कहा गया है कि मोक्ष का उपाय है वह सारा ही योग है। संक्षेप में ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही मोक्ष का मार्ग है। हम इस मानव जीवन में योग साधना की दिशा में आगे बढ़ें।
इस मानव जीवन में धर्म के संस्कार आ जाए। ज्ञानशाला से जुड़े ज्ञानार्थी बैठें हैं, छोटी उम्र में ही इनको धर्म के संस्कार मिल जाते हैं, धार्मिक ज्ञान सिखा दिया जाता है। अच्छे संस्कार आ जाते हैं तो यह नई पौध सुसंस्कारी बन जाती है। धार्मिक ज्ञान के साथ यथार्थ के प्रति भी श्रद्धा बढ़े। यथार्थ दृष्टि ही सम्यक दर्शन है। महाव्रतों का आचरण करना सम्यक् चारित्र है। सम्यक्त्व के साथ अणुव्रत को भी स्वीकार कर ले तो वह भी देश चारित्र हो सकता है। ज्ञान साधना करना योग साधना है। भोग से योग की ओर गति करने का प्रयास करें। विद्या-संस्थानों में अध्यात्म के ज्ञान की बातें भी बताई जाए, योग के प्रयोग भी चलें। विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार आ जाये तो विद्या-संस्थानों की सफलता हो सकती है। सम्यक् ज्ञान के बाद श्रद्धा मजबूत हो। जो अच्छी बात जान ली है, उस बात के प्रति श्रद्वा हो जाये और वह जीवन व्यवहार में भी आ जाये। सम्यक् ज्ञान,सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र मोक्ष का मार्ग बन जाता है। परम सुख का स्थान मोक्ष योग साधना से प्राप्त हो सकता है। आचार्यप्रवर के स्वागत में उपासक सुभाषचन्द समदड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय महिला मंडल ने स्वागत गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।