ब्रह्मा, विष्णु, महेश तुम्हीं हो
संयम के अनुत्तर साधक को, श्रद्धानत हो शीश झुकाएं।
दीक्षा कल्याणक, अमृत-उत्सव, अमृत-पुरूष को आज बधाएं।
ब्रह्मा-विष्णु-महेश तुम्हीं हो, रामलल्ला हो प्रभु तुम मेरे,
कृष्ण-कन्हैया भी तुम मेरे, हम चरणों के चाकर तेरे।
चरण-शरण प्रभु पाकर तेरी, संयम से सुरभित बन जाए,
दीक्षा-कल्याणक अमृत उत्सव, अमृत पुरूष को आज बधाएं।।
आस तुम्हीं हो, सांस तुम्हीं हो, जीवन के मधुमास तुम्हीं हो।
हृदतंत्री के तार तुम्हीं हो, जीवन के विश्वास तुम्हीं हो।
गण-बगिया के गणमाली तुम, तुमसे गण-बगिया विकसाए।
संयम के अनुत्तर साधक को, श्रद्धानत हो शीश झुकाएं।।
तेरापंथ के महासूर्य तुम, तेजस्वी है भाल तुम्हारा,
जिनशासन के नीलगगन में, चमक रहे हो बन ध्रुवतारा।
ज्योतिचरण से पाकर ज्योति, हम भी ज्योतिर्मय बन जाएं,
दीक्षा-कल्याणक, अमृत-उत्सव, अमृत-पुरूष को आज बधाएं।।
तीर्थंकर उणिहारी प्रभुवर, वीतराग लगते साक्षात्।
तुलसी-महाप्रज्ञ सी प्रज्ञा, लिखदो गण में नूतन ख्यात।
भिक्षु-गण के उन्नायक प्रभु, महाश्रमण की महिमा गाएं।
संयम के अनुत्तर साधक को, श्रद्धानत हो शीश झुकाएं।।