हे युगप्रधान! करूणा निधान!
तुलसी महाप्रज्ञ की दिव्य दृष्टि ने, दिव्य विभूति तुम्हें बनाया।
अद्भुत क्षमता समता से, गुरुद्वय दिल में विश्वास जमाया।
पौरूष की ले मशाल कर में, भैक्षव शासन को शिखरों चढ़ाया।
श्रमणों में भी महाश्रमण हो, अनुशासन की हो मिसाल।
हे ज्योतिचरण! हे महाश्रमण! तेरी महिमा है बेमिसाल।।
समय नियोजन, कुशल प्रबंधन, अप्रमत्तता है पहचान।
जन-जन का संताप हरे, सौम्य वदन मोहक मुस्कान।
अमृतमय तव मीठी वाणी, भरती निष्प्राणों में जान।
नजरों से नजरें मिलते ही, शांत होते मन के सवाल।
तारण-तरण, पावन शरण, तेरी महिमा है बेमिसाल।।
कालजयी व्यक्तित्व तुम्हारा, जग सारा तुमसे आकर्षित।
अनुपमेय नेतृत्व तुम्हारा, वत्सलता से हर मन हर्षित।
सृजनशील कर्तृत्व तुम्हारा, शुभ भावों से करते अर्चित।
मानव तन में देव स्वरूप हो, हृदय तेरा बेहद विशाल।
हे संघ पुरूष! हे युगपुरूष! तेरी महिमा है बेमिसाल।।
अर्ध सदी की संयम यात्रा, स्वर्णिम इतिहास रचाओ तुम।
गण विकास का चिन्तन कर, गण बगिया सरसाओ तुम।
दीप्तिमान हो जीवन मेरा, कृपा दृष्टि बरसाओ तुम।
दुर्लभ सन्निधि तेरी पाकर, हो जाता हर मनुज निहाल।
संयम प्रदाता! हे भाग्य-विधाता तेरी महिमा है बेमिसाल।