स्वर्ग से सुंदर

स्वर्ग से सुंदर

सीमंधर प्रभु समवसरण सम महाश्रमण दरबार।
पापभीरू है तव जीवन, क्षीर-नीर सा यह उपवन।
आगम के अध्येता प्रवचन प्रभावक,
ज्ञान-दर्शन गुण संपन्न धृतिधर साधक,
आचार-कुशल श्रुत-सागर की, कांति मोहनगार।।
चुंबक ज्यों आकर्षण मन को लुभाएं,
आर्जव-मार्दव से दुनिया में छाएं,
स्फटिक जैसी पारदर्शिता, यायावर मनहार।।
धृतास्त्रव-लब्धि सम वचन में मिठास है,
एक हजार अष्ट गुणों से करते उजास हैं,
अक्षीणमहानस-लब्धि धारक दुगड़ कुल उजियार ।।
त्रिभुवन के तारणहार ऋद्धि सुहानी,
क्षमा वीरस्य भूषणम् से रचदी कहानी,
चरण शरण से भव्य जीव पाते हैं बेड़ा पार।
दीक्षा कल्याणक उत्सव पर वंदन बार हजार।।