भगवान ऋषभ का है मानव जाति पर अनंत उपकार

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भगवान ऋषभ का है मानव जाति पर अनंत उपकार

स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल भवन में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभ का दीक्षा दिवस मनाया गया। इस अवसर पर श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए शासनश्री मुनि विजयकुमारजी ने कहा- आज का दिन मानव जाति के अभ्युदय का दिन कहा जा सकता है। भगवान् ऋषभ ने चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन दीक्षा लेकर धर्म युग का विधिवत् प्रवर्तन किया था। उन्होंने अपने जीवन के पूर्व भाग में मानव जाति को कर्म युग का प्रशिक्षण दिया। उस समय के आदमी अत्यधिक सरल स्वभावी थे। निंदा, प्रवंचना, प्रदर्शन, संग्रह जैसी मलिन वृत्तियों ने उस युग में जन्म ही नहीं लिया था। प्रकृति से मनुष्यों की जीवनगत आवश्यकताएं पूरी हो जाती थी। धीरे-धीरे प्रकृति जन्य व्यवस्थाएं टूटने लगी। छीनाझपटी और अपराधी मनोवृत्तियां जनमानस में पनपने लगी।
किसी ने सही कहा है- ‘अव्यवस्था व्यवस्था की जननी है।’ बढ़ती हुई अव्यवस्था पर नियंत्रण करने पिता नाभि कुलकर ने ऋषभ को व्यवस्थाओं का संचालन करने के लिए कहा। ऋषभ का राज्याभिषेक हुआ, वे उस युग के प्रथम राजा कहलाए। ऋषभ ने अपने पुत्र-पुत्रियों को अनेक प्रकार की जीवन से जुड़ी हुई कलाएं व विद्याएं सिखाई। जन सामान्य को प्रशिक्षण देकर तैयार किया। दंड संहिता का निर्माण किया गया। व्यवस्था भंग करने वालों को यथोचित दंड दिया जाने लगा। सारी व्यवस्थाएं संपादित करके राजा ऋषभ ने त्याग की संस्कृति को विकसित करना जरूरी समझा। उन्होंने अपने पुत्रों को राज्य का वितरण करके चार हजार क्षत्रियों के साथ साधना का जीवन स्वीकार कर लिया।
यद्यपि मुनि धर्म का ज्ञान न होने से व मुनि ऋषभ के लक्ष्य प्राप्ति पर्यंत मौन होने से बहुत सारे मुनि अपने मुनित्व को छोड़कर अन्य रूप में साधना करने लगे। मुनि ऋषभ को पुरिमताल नगर में परम ज्ञान की प्राप्ति हुई। कैवल्य की प्राप्ति के बाद उन्होंने साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चार तीर्थ की स्थापना की। लंबे समय तक उन्होंने धरती पर विचरण किया। अंत में अष्टापद पर्वत पर अनशन करके परमधाम मोक्ष को प्राप्त किया। कर्म युग और धर्म युग दोनों का प्रवर्तन करके भगवान ऋषभ ने मानव जाति पर अनंत उपकार किया। भगवान ऋषभ के दीक्षा दिवस के साथ ही शासनश्री मुनिवर का मंगल भावना कार्यक्रम भी जुड़ा हुआ था। परम पूज्य गुरुवर की असीम कृपा से यहां मुनिश्री का एक मास का सफल प्रवास हुआ। यहां से रतनगढ़ की ओर मुनिश्री का प्रस्थान होगा।