वीतराग कल्पगणिवर
तुलसी की कमनीय कलाकृति, महाप्रज्ञ ने जिसे संवारा।
जिनशासन की अभिनव आभा, महाश्रमण को नमन हमारा।।
मोहन से मुदित स्वरूप, श्रमनिष्ठा की अकथ कहानी।
महाश्रमण पद मिला निरामय, गुरु निष्ठा की प्रखर निशानी।
आर्य प्रवर महाश्रमण अलौकिक, चमका जग का भाग्य सितारा।।
मोहनी मुद्रा आर्यप्रवर की, पाप ताप संताप हरती।
नयनों की मुस्कान निराली, स्नेह का संचार करती।
वीतराग कल्प गणिवर ने, युग आस्था का रूप निखारा।।
करूणा सागर महाप्रभु की, आज्ञा निष्ठा ऊर्जा भरती।
शांतिदूत के अनुशीलन से, रोमांचित है अम्बर धरती।
प्रज्ञा ज्योत जलाए गुरुवर, गण को देते नया नजारा।।
दृष्टि में दैपेय लीला, सृष्टि में शाश्वत प्रभा है।
मर्यादा निष्ठा सुहानी, प्रवचन छटा सुरम्य शुभा है।
अमृत महोत्सव राष्ट्र संत का, नव मस्तक भूमंडल सारा।।