दीक्षोत्सव की यह अर्धसदी
दीक्षोत्सव की यह अर्धसदी, वर्धापन अवसर आया है।
नन्दनवन के हर पल्लव ने, अभिनव उन्मेष जगाया है।।
जय ज्योतिचरण जय महाश्रमण तुम विघनहरण मंगलकारी,
शासनमाता द्वारा उद्घोषित मंत्र बना भवभयहारी,
जिसने भी तेरा जाप जपा उसका सब संताप मिटा,
श्रद्धा से करते हम अर्चना।।
गुरुवर तेरे पदचिन्हों पर, अविरल में बढ़ती जाऊं,
तुझमें ही हो विश्राम मेरा, तेरे साए में पलती जाऊं,
हमने जाना पहचाना है, जग तेरा ही दीवाना है,
मेरी सासों ने धडकन ने, भगवान तुझे ही माना है,
मैं हर पल तुझको ध्याऊं, एक तुझमें ही रम जाऊं,
बस इतनी है दिल की आरजू।।
महावीर के शासन का, तुमने कितना सम्मान किया,
जैन एकता के स्वर को, सौहार्द पूर्ण बहुमान दिया,
हिंसा से सुलगते मानव को, मानवता का वरदान दिया,
नशा मुक्ति, नैतिकता सह, सद्भावों का अवदान दिया,
तेरी वाणी जग कल्याणी, जिनवाणी की शहनाणी,
चरणों में अर्पित है वन्दना।।
भि.भा.रा.ज.म.मा.डा.का.तु. महाप्रज्ञ के पट्टधर हो,
अज्ञान तिमिर को हरने वाले विश्व प्रकाशी दिनकर हो,
हे महाश्रमिक! तेरी श्रमबूदो ने, गण वन को विकसाया,
तुम महामेघ बनकर बरसे, सिंचन पाकर मन सरसाया,
हे युग प्रधान! हे युगनायक!, हे शान्तिदूत! शिवसुखदायक
उज्ज्वलतम संयम की साधना,
चरणों में अर्पित है वन्दना।।
लय - तेरी मिट्टी में मिल