महाश्रमण में तुलसी का प्रतिबिम्ब

महाश्रमण में तुलसी का प्रतिबिम्ब

जैसे सूर्य सम्पूर्ण विश्व के अन्धकार को दूर करता है ठीक वैसे ही गुरु की वात्सल्य पूर्ण नज़रों ने मेरे अन्त: करण के अंधकार को छिन्न-भिन्न कर डाला। एक अनगढ पत्थर के रूप में मैं गुरु तुलसी के श्री चरणों में समर्पित हुई। उस पत्थर को प्रतिमा का रूप दिया गुरु तुलसी ने। उस प्रतिमा में संयम रूपी प्राण भरे श्रद्धेय आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने व उसी प्रतिभा को शिक्षा, संस्कार व सेवा इस त्रिवेणी से संस्कारित किया आचार्य श्री महाश्रमणजी ने। आज मैं पूज्यप्रवर के संयम जीवन की अर्ध सदी पर गुरुदेव श्री तुलसी के व्यक्तित्व व कर्तृत्व के साथ आचार्य श्री महाश्रमणजी के व्यक्तित्व व कर्तृत्व को जोड़ने का लघु प्रयास कर रही हूं।
मैंने अनुभव किया गुरुदेव तुलसी का प्रतिबिम्ब श्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमणजी में प्रतिबिम्बित हो रहा है। गुरुदेव श्री तुलसी जैसी चाल, गुरुदेव श्री तुलसी जैसा छोटा कद व गुरुदेव श्री तुलसी जैसे ही कुछ प्रसंग। समण श्रेणी की घटना है। गुरुदेव श्री तुलसी कंठस्थ चीजों की परीक्षा ले रहे थे। उसी क्रम में मेरा भी नम्बर आया। तमिल भाषा में शिक्षण प्राप्त करने के कारण कंठस्थ चीजों में मेरी अशुद्धियां भरपूर थी, लेकिन मैं उनसे अनजान थी। आचार्यप्रवर ने मुझसे लोगस्स पाठ का उच्चारण करवाया, मैंने पूरी तल्लीनता के साथ आंख बंद कर पूरा लोगस्स सुनाया। जब मैंने आंख खोली तो मैं दंग रह गई। पूरा माहौल हंसीमय बन गया था। न केवल साधु-साध्वियां हंस रहे थे अपितु परम पूज्य गुरुदेव भी इतने मुलका रहे थे कि मैं एक मिनट भी खड़ी नहीं रह सकी। शर्म व लज्जा से मेरी आंखें झुक गई। ठीक वैसा ही माहौल बना आचार्य श्री महाश्रमणजी के शासन काल में। सन् 2019 का पूज्य प्रवर का चातुर्मास कर्नाटक की राजधानी बैंगलोर में हुआ। उस समय हमें भी गुरु सन्निधि में अपनी जन्मभूमि में चातुर्मास करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। चातुर्मास की सम्पन्नता के बाद पूज्यप्रवर ने बहिर्विहारी साध्वियों की सामूहिक पृच्छा की। जिन-जिन की पृच्छा होती गई उन्हें पंक्ति में खड़े रहने का निर्देश प्राप्त हुआ। एक ओर अग्रगामी और दूसरी ओर अनुगामी की पंक्ति थी। जैसे ही साध्वी कीर्तिलताजी की पृच्छा सम्पन्न हुई साध्वीश्री अग्रगामी की पंक्ति में खड़े हो गए। लेकिन मैं विस्मृत हो गई कि मुझे कहां खड़ा होना है। मैं भी उन्हीं का अनुसरण करती हुई साध्वीश्री के पास खड़ी हो गई। पूज्यप्रवर की दृष्टि जैसे ही मुझ पर पड़ी। गुरुदेव ने फरमाया - 'तुम-तुम इधर नहीं। अभी तुम्हें इस पंक्ति में आने की देरी है।' मैं शर्मिंदा होकर दूसरी पंक्ति में चली गई। सारा वातावरण खुशनुमा बन गया।
गुरुदेव श्री तुलसी के शासन काल में मुझे अठाई की तपस्या करने की शक्ति श्री चरणों से मिली तो पुनः वह शक्ति श्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमणजी के शासन काल में मुझे प्राप्त हुई और मैं आप के आभावलय में रह कर नौ की तपस्या कर पाई। मैं अपने लिए यही मंगल कामना करती हूं कि दीक्षा के अमृत महोत्सव की भांति हीरक जयंती का भी रसास्वादन कर सकूं।