मोहन आज हुआ संन्यस्त
मोहन आज हुआ संन्यस्त,
संतों का सान्निध्य सुपावन पाकर मार्ग प्रशस्त ।।
बने क्लास के ये मॉनीटर,
पढ़ने में भी अव्वल नम्बर,
स्पर्धा में प्रतिभागी बनकर,
होनहार विद्यार्थी कहलाए हरदम विन्यस्त।।
मिलकर सारे भाई-भाई,
धमा चौकड़ी खूब मचाई,
खेल कबड्डी छुपम-छुपाई,
गोल-गोल कंचों से खेले जीवन था अलमस्त ।।
नेमां की संतानें सारी,
चंचल किन्तु आज्ञाकारी,
मोहन था सबसे संस्कारी,
कार्यों का संपादन नियमित दिनचर्या थी व्यस्त ।।
चतुर्दशी वैशाखी आई,
मुनि सुमेर से दीक्षा पाई,
और उन्हीं से शिक्षा पाई,
हुए अग्रसर संयम पथ पर आत्मार्थी आश्वस्त ।।
महाव्रतों का पहना बाना,
समिति गुप्तियों को पहचाना,
निष्ठामृत से भरा खजाना,
स्थितप्रज्ञ एकाग्रचित्त अरू मितभाषी अभ्यस्त ।।
तुलसी महाप्रज्ञ का साया,
मानो सुखमय शीतल छाया,
महाश्रमण ने अविरल पाया,
विनयवंत मतिमंत संत के सिर पर गुरु का हस्त ।।
लय - निहारा तुमको कितनी बार