मैं और मेरे सबसे िनकट भाई मोहन
हम लोग आठ भाई बहिन थे, मोहन से मेरा सबसे निकट का रिश्ता था। आठ में से छः भाई बहिन मोहन से बड़े थे। मैं इकलौता था जो मोहन से छोटा था। मोहन मेरा वो भाई - जिसकी अंगुली पकड़ कर मैंने चलना सीखा, जिसकी अंगुली पकड़ कर मैंने स्कूल जाना शुरू किया। बड़े गर्व और गौरव की अनुभूति होती है जब देखता हूं कि मेरा वो ही भाई जिसने मुझे चलना सिखाया, पढ़ना सिखाया आज पूरे विश्व को सद्मार्ग पर चलना सीखा रहा है, अहिंसा और नैतिकता का पाठ पढ़ा रहा है। आप यूं ही स्वस्थ रहते हुए युगों-युगों तक विश्व में अहिंसा और नैतिकता का प्रकाश फैलाते रहें यही मंगल कामना।