ज्योतिचरण तेरी शरण
ज्योतिचरण, तेरी शरण, हे महाश्रमण गुरुवर, तेरी जयकार हो।
ज्योतिचरण तेरी शरण, तुझमें रमे अंतःकरण।।
खोजा जमाने में सदा, गुरु तुम मिले सबसे जुदा।
मेरी चाह अंतस की मिटी, तेरे चरण चाहूं सर्वदा।।
हृदतंत्री के हो तार तुम, जीवन के रेखाकार तुम।
प्रगती, गती तुमसे मिले, जग जगती से उद्धार तुम।।
जो भी मिला, तुमसे मिला, कैसे कहूं गुरुवर, तेरा उपकार हो।।
जन्मों के अर्जित पुण्य है, पाकर कृपा हम धन्य है।
परमात्म का हो स्वरूप तुम, करुणा का रूप अनन्य है।।
तुम ही हृदय के हर्ष हो, अध्यात्म का उत्कर्ष हो।
आभावलय उज्ज्वल प्रखर, भक्ति का परम प्रकर्ष हो।।
कुदरत का तुम उपहार हो, आधार तुम गुरुवर, कि सुख मंदार हो।।