मंगल भाव सजाएं हम

मंगल भाव सजाएं हम

महातपस्वी महाश्रमण की गौरव गाथा गाएं हम।
दीक्षा कल्याणक उत्सव पर मंगल भाव सजाएं हम।।
धन्य धरा सरदारशहर की जहां तुम्हारा जन्म हुआ।
झूमर-नेमा अंगज को पा दूग्गड़ कुल कृतपुण्य हुआ।
मोहन से फिर महाश्रमण का, रोचक-वृत्त सुनाएं हम।।
भैक्षव शासन तुलसी युग में मुनि सुमेर से ली दीक्षा।
अप्रमत्त बन विनयभाव से पाई आध्यात्मिक शिक्षा।
अपरिमेय गुरु कृपा दृष्टि की, प्रेरक झलक दिखाएं हम।।
बढ़े प्रगति के प्रोन्नत पथ पर बने आन्तरिक सहयोगी।
चमके महाप्रज्ञ पट्टधर बन दिव्य अनुत्तर ध्रुवयोगी।
कीर्तिमान यात्रा दीक्षा के, सुन-लख कर चकराएं हम।।
युग प्रधान पद किया अलंकृत युग को नव आयाम दिए।
गूंजेंगे वे दिगदिगन्त में जो तुमने पैगाम दिए।
अनुकम्पा की जगे चेतना, निष्ठामृत सरसाएं हम।।
मुख्यमुनि साध्वीवर्या साध्वीप्रमुखा का चयन किया।
महाश्रमणी अमृत उत्सव, शासनमाता अधिमान दिया।
नए-नए इतिहास रचाएं, योगक्षेम मनाएं हम।।
तेजस्वी आभा संयम की, सुर नर श्रद्धा से झुकते।
बन जाती वह माटी चंदन चरण जहां तेरे टिकते।
लिखें समय के स्वर्ण भाल पर, तेरी पुण्य ऋचाएं हम।।
करें कोटिशः कोटि कामना, वर्ष करोड़ों राज करो।
शांति दूत शीतल किरणों से जगती का संताप हरो।
पाकर तेरी कुशल शासना, निज सौभाग्य सराएं हम।।