महाश्रमण को आज बधाएं
सागर फेन समुज्जवल, महाश्रमण को आज बधाएं,
अनाघ्रात आस्था सुमनों के स्वस्तिक रम्य रचाएं।
प्राणों में है नव पुलकन, मुस्काए अहो! धरा-गगन।।
उदितो दित है रूप तुम्हारा ‘तुलसी’ सरजनहारा।
सर्वस्व समर्पण श्री चरणों में, चमका भाग्य सितारा।
जीवन शैली है अलबेली, जागृति-पाठ पढ़ाए।।
असंदीन दीप है शासन, त्राण प्रतिष्ठा गति है।
गुरुदृष्टि ही जिनशासन में, सबसे बड़ी प्रगति है।
महाश्रमण गण गगनांगण में, नूतन चांद उगाए।।
खुली किताब है तेरा जीवन, अक्षर-अक्षर अनुपम।
समता-ममता-क्षमता का, कैसा अद्भुत है संगम।
पल-पल पग-पग स्वस्तिकमय हो, पढ़ें स्वस्ति ऋचाएं।।
लय - मांयन मांयन मुंडेर पे तेरे